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परिणाम (विपाक) कितना दुःखद होता है इसका विशद वर्णन इस श्रुतस्कन्ध में किया गया है।
“स्थानांगसूत्र में कर्मविपाक के मृगापुत्र, गोत्रास, अण्डशकट, माहन, नन्दीसेन, शौरिक, उदुम्बर, सहसोद्दाह, आमलक और कुमार लिच्छवी, ये दस अध्ययन बतलाये हैं। जो वर्तमान संस्करण में उपलब्ध नामों से भिन्न हैं।
पंडित बेचरदास डोशी ने स्थानांग में वर्णित नामों के साथ वर्तमान में उपलब्ध संस्करण के नामों का समन्वय किया है। वह इस प्रकार है -
गौत्राश, उज्झितक के अन्य भव का नाम है। 'अण्डनाम' अभग्गसेन ने पूर्व भव में जो अण्डे का व्यापार किया था, उसका सूचक होना चाहिये। 'माहन' (ब्राह्मण) नाम का सम्बन्ध बृहस्पतिदत्त पुरोहित से हो सकता है। 'नन्दीसेन' का नाम नन्दीवर्धन के लिये प्रयुक्त हुआ है। सहसोद्दाह-आमलक का सम्बन्ध राजा की माता को तप्तशलाका से मारने वाली देवदत्ता के साथ मिलता है। कुमार लिच्छवी के स्थान पर अंजुश्री नाम आया है, अंजु का जीव अपने अंतिम भव में किसी सेठ के यहां पुत्र रूप में उत्पन्न होगा इस कारण से सम्भव है कि लिच्छवी का सम्बन्ध लिच्छवी वंश विशेष से है।"
द्वितीय श्रुतस्कन्ध में सुबाहु, भद्रनन्दी आदि दस कथाओं
नितीय । के माध्यम से पुण्यफल का निरूपण किया है। इन व्यक्तियों ने पूर्वभव में सुपात्रदान आदि शुभ कार्य किये, जिनके फलस्वरूप इन्हें अपार ऋद्धि की प्राप्ति हुई।
कर्म सिद्धान्त जैनदर्शन का आधारभूत सिद्धान्त है। प्रस्तुत आगम में उदाहरणों के माध्यम से इस सिद्धान्त का सुन्दर वर्णन किया गया है। १२. दृष्टिवाद
दृष्टिवाद बारहवां अंग आगम है। इसमें संसार के सभी दर्शनों एवं नयों का निरूपण किया गया है। 'दृष्टिपात' तथा 'भूतवाद' इसके अपर . नाम हैं।
१६ 'स्थानांगसूत्र' - १०/१११ १७ 'जैन साहित्य का वृहद् इतिहास' प्रथम भाग - पृष्ठ २०।
- ('अंगसुत्ताणि' लाडनूं खण्ड १ पृष्ठ ८१३) ।
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