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________________ १६ आश्रवद्वारों के रूप में इसमें हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य एवं परिग्रह का विस्तृत विवेचन किया गया है एवं यह भी बताया गया है कि इन आश्रवद्वारों के सेवन से जीव को किस प्रकार की दुर्गति प्राप्त होती है। पांच संवरद्वारों की चर्चा करते हुए इसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की विस्तृत चर्चा की गई है। इसमें अहिंसा आदि के विभिन्न नामों और उनकी सार्थकता का भी उल्लेख है। प्रस्तुत आगम में अहिंसा के ६० नामों की चर्चा करते हुए उसके स्वरूप को व्यापक रूप से स्पष्ट किया गया है। इसकी प्राकृत भाषा प्रांजल, विशेषणों से भरपूर तथा गद्यात्मक है। डॉ. सागरमल जैन की यह मान्यता है कि इस आगम की प्राचीन विषयवस्तु उपलब्ध, 'ऋषिभाषित' और 'उत्तराध्ययनसूत्र' का सम्मिलित रूप है। इस सन्दर्भ में उन्होंने अपने कुछ तर्क एवं प्रमाण प्रस्तुत किये हैं जो विद्वानों के लिये विचारणीय हैं। जिसकी चर्चा 'उत्तराध्ययनसूत्र की विषयवस्तु' के सन्दर्भ में इस ग्रन्थ के द्वितीय अध्याय में उपलब्ध है । ११. विपाकसूत्र यह द्वादशांगी का ग्यारहवां अंग है। उपलब्ध अंग आगमों में यह अंतिम अंग आगम है। विपाक का अर्थ शुभ एवं अशुभ कर्मों का उदय (अनुभव) है। इसमें पुण्य एवं पाप कर्मों के विपाक (उदय) का वर्णन होने से इसका नाम 'विपाकसूत्र' रखा गया है।५. प्रस्तुत आगम में दो श्रुतस्कन्ध एवं बीस अध्ययन है, वर्तमान में यह १२१६ ग्रन्थान परिमाण है। प्रथम श्रुतस्कन्ध के दस अध्ययनों में क्रमशः मृगापुत्र, उज्झितकुमार, अभग्गसेन, शकट, बृहस्पतिदत्त, नंदीवर्धन, उदुम्बरदत्त, शौर्यदत्त, देवदत्ता और अंजुश्री की कथायें हैं। इन कथाओं में यह बतलाया गया है कि इन लोगों ने पूर्व भव में कैसे कैसे पापकर्मों का उपार्जन किया जिसके परिणामस्वरूप उन्हें दुःखी होना पड़ा। पाप करते समा तो जीव अज्ञानतावश प्रसन्न होता है, किन्तु उसका - 'अंगसुत्ताणि' लाडनूं खण्ड १ पृष्ठ ६२२ ; - 'नवसुत्ताणि' लाडनूं पृष्ठ २७४ ; १५ (क) 'समवायांग' प्रकीर्णक समवाय, सूत्र ६६ (ख) 'नन्दीसूत्र' ६१ (ग) कसायपाहुड भाग १ - पृष्ठ १३२; (घ) “तत्त्वार्थसूत्र' - १/२० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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