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९. तरोपपातिकदशा
द्वादशांगी का नौवां अंग अनुत्तरोपपातिक दशा है। इसके दस अध्ययनों में उत्कृष्ट चारित्र पालन कर अनुत्तर विमानवासीदेव बनने वाले मुनिवरों का वर्णन है । अतः इसका नाम 'अनुत्तरोपपातिक दशा अन्वर्थक' है।
___ प्रस्तुत आगम में एक श्रुतस्कन्ध, तीन, वर्ग एवं तैंतीस अध्ययन हैं। इसकी शैली गद्यात्मक एवं भाषा महाराष्ट्री प्रभावित अर्धमागधी है। ...
प्रथम वर्ग में जाली मयालि आदि दस राजकुमारों, द्वितीय वर्ग में दीर्घसेन, महासेन आदि तेरह राजकुमारों एवं तृतीय वर्ग में धन्यकुमार, सुनक्षत्र कुमार आदि दस कुमारों के द्वारा अपूर्व भौतिक सम्पदा का त्याग कर वैराग्यपथ पर अग्रसर होने का वर्णन है।
इस प्रकार कुल तैंतीस कुमार उत्कृष्ट तप, त्याग और संयम की आराधना कर अनुत्तरविमान नामक देवलोक के देव हुए। वहां से अपनी आयु पूर्ण कर मानवभव के द्वारा मुक्ति को प्राप्त करेंगे।
इस आगम में महावीरकालीन इन कुमारों की आध्यात्मिक साधना के साथ साथ तत्कालीन सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों पर भी प्रकाश डाला गया है।
१०. प्रश्नव्याकरण
__ 'प्रश्नव्याकरण' (पण्हावागरण) दसवां अंग आगम है। प्राचीन आगम स्थानांगसूत्र के अनुसार इसमें ऋषिभाषित, आचार्यभाषित और महावीरभाषित दस अध्ययनों के होने का उल्लेख है। समवायांग और नन्दीसूत्र के निर्देशानुसार इसमें निमित्तशास्त्र सम्बन्धी प्रश्नोत्तर हैं, किन्तु प्रश्नव्याकरणसूत्र के वर्तमान संस्करण में इसके दस अध्ययनों के रूप में पांच आश्रव द्वारों एवं पांच संवरद्वारों की चर्चा मिलती है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कालक्रम में प्रश्नव्याकरणसूत्र की विषयवस्तु में परिवर्तन होता रहा। प्रश्नव्याकरणसूत्र के पांच आश्रवद्वारों एवं पांच संवरद्वारों की चर्चा हमें सर्वप्रथम नन्दीचूर्णि में उपलब्ध होती है।
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