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________________ १७ ८. अन्तकृतदशांग आठवां अंग आगम अन्तकृतदशा (अन्तगडदसा) है। केवलज्ञान प्राप्ति के साथ ही जो साधक संसार (जन्म मरण की परम्परा) का अन्त कर लेते हैं वे अन्तकृत कहलाते हैं। इसमें अन्तकृत साधकों की जीवनगाथा का वर्णन होने से इस आगम का नाम अन्तकृतदशांग हैं। इस आगम में एक श्रुतस्कंध के आठ वर्ग में ६० (प्रव. किरणावली के अनुसार ६२) अध्ययन हैं। वर्तमान में इसका परिमाण ६०० ग्रन्थान है। प्रथम वर्ग में द्वारिका नगरी का वृत्तांत कहकर श्रीकृष्ण वासुदेव की रानियों एवं पुत्रों की संख्या का वर्णन किया गया है तथा अंधकवृष्णि राजा की धारिणी रानी के दस पुत्रों द्वारा नेमिनाथ प्रभु के पास दीक्षा लेकर बारह भिक्षुप्रतिमा का पालन करते हुए गुणसंवत्सर तप की आराधना कर अनशन पूर्वक शत्रुजय गिरि पर मोक्ष जाने का वर्णन है। द्वितीय वर्ग मे अंधकवृष्णि कुल के दूसरे आठ राजकुमारों की दीक्षा, आराधना एवं अनशनपूर्वक सिद्धि गमन का वर्णन है। तृतीय वर्ग के प्रथम अध्ययन में अणियसकुमार, दूसरे से सातवें में देवकीरानी के छह पुत्रों, आठवें में गजसुकुमाल, ६, १०, ११ वें में बलदेव (कृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता) के तीन पुत्रों एवं १२ व १३ वें में वसुदेव की धारिणी रानी के दो पुत्रों के दीक्षाग्रहण एवं आराधनापूर्वक मोक्षगमन का उल्लेख है। चतुर्थ वर्ग में जालि मयालि आदि दस राजकुमारों की मुक्ति का विवरण है । पांचवें वर्ग में कृष्ण की आठ रानियों तथा शाम्बकुमार की दो रानियों की दीक्षा और उनके शत्रुजय पर मोक्ष गमन का वर्णन है। इसमें दारूअग्नि एवं दीपायन द्वारा द्वारिका के नाश का उल्लेख भी है। . ... छठे वर्ग में अंतकृतकेवली सोलह राजकुमारों का वर्णन है। इसी में बालमुनि, अतिमुक्तकुमार के सहज बालभाव एवं साधना का भी वर्णन है। - सातवें वर्ग में श्रेणिक महाराजा की तेरह रानियों एवं आठवें वर्ग में श्रेणिक महाराजा की दस रानियों की दीक्षा आदि का विवेचन है। यह आगम भौतिकता पर आध्यात्मिकता की विजय का संदेश देता है। साथ ही रत्नावली, कनकावली आदि उत्कृष्ट तपश्चर्याओं का उल्लेख भी इसकी विशेषता को प्रकट करते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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