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‘प्रस्तुत आगम में दृष्टान्तों और कथाओं के माध्यम से तप, त्याग व संयम की प्रेरणा दी गई है। इसके प्रथम श्रुतस्कन्ध में मेघकुमार, धन्नासार्थवाह, शैलक राजर्षि, मल्लि, (मल्लिनाथ), जिनपालित, जिनरक्षित, नन्दमणियार, तेतलीपुत्र, . द्रौपदी, चिलातिपुत्र-सुषमा, पुण्डरीक-कण्डरीक आदि की कथायें तथा अण्डे, कछुए; चन्द्रमा आदि के प्रेरक एवं रोचक दृष्टान्त हैं।
द्वितीय श्रुतस्कन्ध दस वर्गों में विभक्त है। इन वर्गों में प्रायः स्वर्ग के इन्द्रों की अग्रमहिषियों के रूप में उत्पन्न होने वाली साधना मार्ग से च्युत पार्श्वसन्तानीय साध्वियों की कथायें हैं। इस द्वितीय श्रुतस्कन्ध को विद्वानों ने. परवर्ती प्रक्षेप माना है। ७. उपासकदशांग
यह सातवां अंग आगम है । इसमें भ. महावीर के दस उपासकों का पवित्र चरित्र है । 'उपासक' शब्द का प्रयोग जैन गृहस्थ के लिये किया जाता है। यहां 'दशा' शब्द दस की संख्या का सूचक है, क्योंकि उपासकदशांग में दस उपासकों की कथायें वर्णित हैं। यदि दशा शब्द का अर्थ अवस्था करें तो इसमें उपासकों की अविरत, विरत एवं साधक अवस्थाओं का वर्णन होने से भी इसका उपासकदशा नाम सार्थक सिद्ध होता है । प्रस्तुत आगम में एक श्रुतस्कंध है जिसमें दस अध्ययन हैं। इसकी शैली गद्यात्मक है।
इसमें वर्णित दस श्रावकों के नाम क्रमशः आनन्द, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुलनीशतक, कुण्ड कोलिक, शकडालपुत्र, महाशतक, नन्दिनीपिता और सालिहीपिता है।
इसमें उपर्युक्त दस प्रमुख उपासकों की ऋद्धि, समृद्धि उनके व्रत ग्रहण एवं समाधिमरण की साधना तथा उस साधना में उपस्थित उपसगों पर विजय प्राप्त करने का निर्देश है।
गृहस्थाचार का मुख्यरूप से विवेचन करने वाला यह एक मात्र आगम ग्रन्थ है । अन्य आगमों में जहां साध्वाचार के निरूपण की प्रमुखता है वहां इस आगमग्रन्थ में एकमात्र गृहस्थाचार का सुन्दर निरूपण किया गया है।
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