________________
प्रस्तुत आगम में ज्ञान के विविध आयामों का वर्णन है साथ ही दार्शनिक तथ्यों का गंभीर निरूपण भी किया गया है। अतः जनमानस की अत्यधिक श्रद्धा का विषय होने से इस जिनवाणी को 'भगवती' विशेषण से अंलकत किया गया। आगे चलकर यह विशेषण, विशेषण न रहकर नाम के रूप में रूढ़ हो गया। वर्तमान में व्याख्याप्रज्ञप्ति की अपेक्षा 'भगवती नाम अधिक प्रचलित है।
प्रस्तुत आगम में इक्कीस से तेइसवें अध्ययन तक वनस्पति का अद्भुत वर्गीकरण किया गया है। गणित की दृष्टि से पार्श्वसंतानीय गांगेय अणगार के प्रश्नोत्तर महत्वपूर्ण हैं। इसमें वर्णित गर्भ-विज्ञान वर्तमान 'जेनेटिक इंजीनियरिंग' की - दृष्टि से विशिष्ट महत्व रखता है। इस आगम के अध्ययन से एक तथ्य यह भी उभरता है कि उस युग में धार्मिक मान्यताओं में भिन्नता होते हुए भी धार्मिक कट्टरता का अभाव था। उपर्युक्त विशेषताओं के साथ इस आगम की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें सर्वप्रथम नवकार महामंत्र को मंगलाचरण के रूप में लिपिबद्ध किया गया है।
इस आगम में गद्य शैली की प्रधानता होते हुए भी अंशात्मक रूप से पद्यभाग भी उपलब्ध है। ६. ज्ञाताधर्मकथा
___ यह छठा अंग आगम है। इसके नामकरण के सन्दर्भ में 'अभिधानराजेन्द्रकोश' में कहा गया है कि ज्ञात का अर्थ उदाहरण है। अतः जिसमें उदाहरण प्रधान धर्मकथायें हैं अथवा जिसके प्रथम श्रुतस्कंध में ज्ञात अर्थात् उदाहरण हैं तथा दूसरे श्रुतस्कन्ध में धर्मकथायें हैं वह 'ज्ञाताधर्मकथा है।" डॉ. सागरमल जी
जैन के अनुसार इसमें ज्ञातवंशीय महावीर द्वारा आख्यात कथारूपकों का संकलन होने से इसका नाम 'ज्ञाताधर्मकथा' है। दिगम्बरपरम्परा में इसका नाम ‘णांहधम्मकहा है। इसमें णाह (नाथ) शब्द से दिगम्बर मान्यतानुसार नाथवंशीय . महावीर का ही बोध होता है।
यह आगम दो श्रुतस्कन्धों में विभक्त है, प्रथम श्रुतस्कन्ध में उन्नीस अध्ययन हैं तथा दूसरे में दसवर्ग हैं।
१४ 'भातान्युदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकया अथवा मातानि ज्ञाताध्यनानि प्रथमश्रुतस्कन्थे धर्मकथा द्वितीये, यासु ग्रन्थपछतिषु ता माताधमकथाः।
- 'अभिधानराजेन्द्रकोश, चतुर्थ भाग, पृष्ठ २००६ ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org