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दृष्टि से एक से लेकर कोटानुकोटि संख्या तक का परिचय दिया गया है। इसमें तीर्थंकर, गणधर, चक्रवर्ती और वासुदेव के वर्णन के साथ जैन भूगोल एवं खगोल की सामग्री भी संकलित है।
पं. दलसुख भाई मालवणिया के द्वारा स्थानांग एवं समवायांग के विषय को निम्न रूप से विभक्त किया गया है
१.
४.
19.
मोक्षमार्ग
महापुरुष विविध । 13
१४
२.
५.
तत्त्वज्ञान
३.
संघव्यवस्था ६.
समवायांग की शैली भी स्थानांग की तरह संख्या प्रधान है। संभवत: विषयों की सरलता से खोज की जा सके इस हेतु से इनमें संख्या क्रम से कोश शैली में विषयों का निरूपण किया गया है।
स्थानांग एवं समवायांग जैसी कोश शैली वैदिक परम्परा के ग्रन्थ महाभारत के वनपर्व (अध्याय - १३४) एवं बौद्ध परम्परा के ग्रन्थ 'अंगुत्तर - निकाय' तथा 'पुग्गल पञ्जति' में भी उपलब्ध होती है ।
गणितानुयोग पुरुष परीक्षा.
समवायांग प्राकृत गद्य में लिखित है। किन्तु इसका जो अंश संग्रहणी सूत्रों से लिया गया है वह पद्य में है।
५. व्याख्या प्रज्ञप्ति (भगवती)
व्याख्याप्रज्ञप्ति पांचवा अंग है इसका प्राकृत नाम 'विवाहपत्ति' है। वृत्तिकार ने इसकी अनेक प्रकार से व्याख्या की है
१३ 'जैनागम स्वाध्याय' पृष्ठ ६३
१. जिस ग्रन्थ में कथन का विविध रूपों में, प्रकृष्टतः निरूपण किया गया हो वह ग्रन्थ व्याख्या प्रज्ञप्ति - है ।
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२. व्याख्या+प्रज्ञा+आँप्ति
ज्ञान जिस ग्रन्थ में है, वह व्याख्याप्रज्ञप्ति है।
'समवायांग' एवं 'नंदीसूत्र के अनुसार व्याख्याप्रज्ञप्ति में ३६००० प्रश्नों का समाधान है।
प्रस्तुत आगम के एक श्रुतस्कंध में एक सौ अड़तीस अध्ययन हैं जो शतक के नाम से विश्रुत है। उद्देशकों की संख्या १६२५ है ।
व्याख्या-कुशलता से, आप्त द्वारा प्राप्त
पं. दलसुख मालवनिया ।
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