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साध्वी राजीमती रैवतक पर्वत पर जा रही थी। मार्ग में अचानक घनघोर वर्षा हुई। 'राजीमती एक गुफा में जाकर रूक गई। उसके वस्त्र वर्षा के कारण गीले हो गये । एक कोने में वह उन्हें सुखाने लगी। वहां अंधकार छाया हुआ था। उसी गुफा में साधु रथनेमी, जो नेमिनाथ प्रभु के लघुभ्राता थे, ध्यान कर रहे थे। उनका ध्यान पूर्ण होने पर अचानक बिजली के चमकने से उनकी दृष्टि राजीमती के निर्वस्त्र देह पर गई और उनका मन विचलित हो गया। वे राजीमती से भोग की याचना करने लगे। राजीमती तुरन्त संभल गई और वस्त्रों से अपने अंगों को आवृत करने के पश्चात् रथनेमि को जाति, कुल एवं शील की गरिमा का भान कराकर पुनः संयम में स्थिर कर दिया ।
उपर्युक्त दोनों उदाहरणों के अतिरिक्त भी उत्तराध्ययनसूत्र में अन्य अनेक स्थलों में नारी के उदात्त चारित्र का वर्णन किया गया है, जैसे पति के पीछे संयम अंगीकार करना व. पति की वेदना में अत्यन्त दुःखी होना। इस प्रकार इसमें वर्णित ये आरव्यान नारी की गरिमा को महिमामण्डित करते हैं। साथ ही यह भी सूचित करते हैं कि उन्मार्ग में जाते हुए पुरूषों को सन्मार्ग के सम्मुख करने में नारी का विशिष्ट योगदान है।
१४.४ शासन व्यवस्था .: शासन के मुख्यतः दो प्रकार उपलब्ध होते हैं -(१) धर्मशासन और (२)राजशासन। .
धर्मशासन के संचालक ऋषि, मुनि, सन्त, भगवन्त होते हैं तथा सजशासन की डोर राजा, महाराजा एवं सत्ताधीश के हाथ में होती है। इन दोनों ही शासनों का कर्तव्य दोष एवं दुर्जनता को दूर कर गुण एवं सज्जनता को प्रश्रय देना है। फिर भी इनमें कुछ मौलिक अन्तर है। धर्मशासन दुर्गुण एवं दुर्जनता को दूर करना चाहता है; राजशासन दुर्गुणी एवं दुर्जन को।
___ उत्तराध्ययनसूत्र में धर्मशासन की चर्चा व्यापक रूप से उपलब्ध होती है। इसमें मुख्यतः आत्मानुशासन पर जोर दिया गया है जिसकी चर्चा हम अन्य अनेक स्थलों पर कर चुके हैं । प्रस्तुत प्रसंग में राजशासन की चर्चा अभिप्रेत है।
In उत्तराध्ययनसूत्र - २२/४०-४६ ।
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