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उत्तराध्ययनसूत्र के चौदहवें अध्ययन में भृगुपुरोहित के दोनों पुत्रों का एक साथ संयम मार्ग में तत्पर होना भी उत्कृष्ट भातृ-प्रेम का परिचायक है। इस कार इसमें भातृ-स्नेह का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत है।
पति-पत्नी सम्बन्ध
उत्तराध्ययनसूत्र में वर्णित उल्लेखों से हमें यह जानकारी प्राप्त होती है कि उस समय दाम्पत्य जीवन सुखद एवं शान्तिपूर्ण था। इसमें दाम्पत्य जीवन के अन्तर्गत नारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत की गई है। ग्रन्थ में कहीं कहीं नारी का पतित रूप भी देखने को मिलता है। नारी की निन्दा करते हुए अनेक स्थलों पर इसे राक्षसी, पंकभूत तथा अनेक चित्तवाली. कहा गया है;" । ज्ञातव्य है कि नारी की यह. आलोचना वस्तुतः नारी की आलोचना न होकर वासनारूपी वृत्ति की आलोचना है। यहां नारी को वासना का प्रतीक मानकर उसकी आलोचना की गई है। ब्रह्मचर्यव्रत की सुरक्षा के लिये यह वर्णन अत्यन्त सहायक प्रतीत होता है। इसमें ऐसा किसी भी नारी का वर्णन नहीं आता है जिससे नारी की गरिमा धूमिल होती हो। इस प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र में नारी के प्रेरणा स्रोत पतिव्रता, शीलवती आदि अनेक उज्ज्वल रूप उजागर हुये हैं। इसमें वर्णित नारी का जो आदर्श रूप निम्न रूप से उल्लिखित किया जा सकता है -
सनी कमलावती - उत्तराध्ययनसूत्र के चौदहवें अध्ययन में रानी कमलावती का उज्ज्वल चरित्र प्रस्तुत किया गया है। बात उस समय की है जब भृगुपुरोहित सपरिवार संयम लेने को सन्नद्ध हो जाते हैं तो राजा इषुकार उनकी धन-सम्पत्ति को अपने मज्यकोष में मंगवाना चाहता है। तब रानी कमलावती राजा को प्रतिबोधित करते हुए बहती है : राजन् ! आप ब्राह्मण के द्वारा परित्यक्त धन को ग्रहण
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Inाराध्ययनसूत्र - २/१७; ८/NI
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