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________________ ५४० दुष्कर है। इसी क्रम में स्त्री जब अपने पुत्र एवं पति को वैराग्यवासित देखती तो वह भी यह मानकर कि घर की शोभा पति एवं पुत्र से ही है, दीक्षा लेने को तत्पर हो जाती थी। __इस प्रकार हम देखते हैं कि माता-पिता एवं पुत्र के मध्य अत्यन्त मधुर सम्बन्ध होते थे। उनके बीच सच्चा स्नेह होता था क्योंकि कहा गया है - 'सच्चा स्नेह हो अगर तो, चलना सत्पथ पर संग।' माता-पिता अपने पुत्र की स्वस्थता के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर हो जाते थे। इस तथ्य की पुष्टि अनाथी मुनि की कथा से होती है। उत्तराध्ययनसूत्र में अन्य स्थलों पर यह भी उल्लेख प्राप्त होता है कि पिता अपने गृहस्थोचित कर्तव्य का. निर्वाह करने के पश्चात् घर-परिवार एवं राज्य का कार्यभार अपने पुत्र को सुपुर्द करके स्वयं संयम अंगीकार कर लेते थे। नमिराजर्षि, सनत्कुमार चक्रवर्ती, करकण्डु, द्विमुख, नग्गति आदि राजाओं ने अपने अपने पुत्र को राज्य में स्थापित कर संयम अंगीकार किया था। भाई-बन्धु सम्बन्ध उत्तराध्ययनसूत्र भातृ-स्नेह का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसमें वर्णित उल्लेखों से यह स्पष्ट होता है कि उस समय भाई-बन्धुओं के बीच चिरस्थायी प्रेम होता था। चित्र एवं सम्भूत नामक दो भाई पूर्व के पांच जन्मों में साथ-साथ उत्पन्न होने के पश्चात् छठे भव में अपने पूर्वकृत कर्मों के फलस्वरूप चित्र एवं सम्भूति के रूप में पृथक्-पृथक् जन्म ग्रहण करते हैं। उनमें चित्र संयम अंगीकार कर लेते हैं और जातिस्मरणज्ञान से जब अपने भाई सम्भूति की स्थिति जानते हैं कि उनका भाई चक्रवर्ती की ऋद्धि-समृद्धि पाकर उसमें आसक्त बना हुआ है तब चित्रमनि अपने भाई को प्रतिबोध देने के लिये आते हैं और अनेक प्रकार की वैराग्योत्पादक चर्चा करते हैं। चित्रमुनि चाहते थे कि वे जिस अलौकिक एवं आध्यात्मिक सुख के उपभोक्ता बने थे । उनका भाई भी उसी सुख के स्वामी बने। इसी प्रकार जयघोषमुनि भी अपने भाई विजयघोष को कल्याणकारी उपदेश के द्वारा संयम मार्ग में स्थिर करते हैं। ३९ उत्तराध्ययनसूत्र - १४/२६, ३० । ४० उत्तराध्ययनसूत्र - १४/३६ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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