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आदि की कथाओं में संयुक्त परिवार के ही उदाहरण मिलते हैं, वहां परिवार की आधुनिक परिभाषा अर्थात् पति पत्नी एवं बच्चों वाली प्रथा दिखाई नहीं देती है।
लघु एवं विशाल परिवार
जहां तक उत्तराध्ययनसूत्र की कथाओं का प्रश्न है उसमें हमें अधिकांश छोटे परिवारों के ही उल्लेख प्राप्त होते हैं। इसमें अनाथीमुनि के सन्दर्भ को छोड़कर कहीं भी अधिक बड़े परिवार के संदर्भ नहीं मिलते हैं। अनाथीमुनि अवश्य अपने गृहस्थजीवन का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि मेरे बड़े एवं छोटे भाई तथा मेरी बड़ी एवं छोटी बहनें मेरी वेदना से दुःखी थीं; किन्तु वहां इनकी भी. निश्चित संख्या नहीं दी गई है । शेष चित्र सम्भूति आदि अन्य अध्ययनों में एक या दो सन्तान के ही उल्लेख प्राप्त होते हैं। बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन भी इसमें अल्पमात्रा में ही दृष्टिगोचर होता है। अतः अधिकांश लघुपरिवार ही होते थे। .
सौहार्दपूर्ण पारिवारिक स्थिति
उस समय पारिवारिक सम्बन्ध अत्यन्त सौहार्दपूर्ण एवं स्नेहयुक्त होते थे। उत्तराध्ययनसूत्र के कथानकों में हमें मातृप्रेम, पितृप्रेम, पुत्रप्रेम, भातृप्रेम, पतिप्रेम आदि के विशिष्ट उदाहरण उपलब्ध होते हैं। इसमें एक भी उदाहरण इस प्रकार का उपलब्ध नहीं होता है, जिसमें पारिवारिक वातावरण अशान्त, कलहपूर्ण एवं दुःखी हो। प्रायः परिवार के किसी भी सदस्य में आपसी ईर्ष्या, घृणा तथा द्वेष का अभाव ही पाया जाता है।
परिवार के प्रमुख सदस्य
उत्तराध्ययनसूत्र के काल में सामान्यतः एक परिवार में माता पिता, पुत्र एवं पुत्रवधुयें होती थीं। इसके कथानकों में प्रायः इन्हीं सदस्यों का वर्णन उपलब्ध होता है। इन सदस्यों का परिवार में क्या स्थान था एवं परिवार के ये सदस्यगण अपने-अपने कर्तव्य का किस प्रकार पालन करते थे, इसका सुन्दर
३६ उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन - १६,२०,२१ । ३७ उत्तराध्ययनसूत्र - २०/२६,२७ ।
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