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(६) उस समय बारात ले जाने की प्रथा भी थी। नेमिकुमार अपने राजसी वैभव- सहित श्रेष्ठ गंधहस्ती पर सवार होकर चतुरंगिणी सेना एवं गाजे बाजे के साथ संपरिवार विवाह के लिये प्रस्थान करते हैं। इसमें यह भी उल्लेख मिलता है कि वर और कन्या को नाना प्रकार के आभूषणों से अलंकृत भी किया जाता था।"
(७) बारात में सभी प्रकार के अर्थात् ऊंच नीच सभी कुलों के व्यक्ति आते थे और उनके लिये भोजन आदि की व्यवस्था की जाती थी अर्थात् विवाहभोज का आयोजन बड़े पैमाने पर होता था।28
(८) उत्तराध्ययनसूत्रकालीन युग में बहुविवाह प्रथा का भी प्रचलन था। जैसे मृगापुत्र अनेक पत्नियों के साथ देवसदृश भोग भोगता था। इसमें यह भी उल्लेख आता है कि मृगापुत्र के पिता बलभद्र की पटरानी का नाम मृगा था। यह सूचित करता है कि बलभद्र राजा की और अन्य रानियां भी थीं। राजा वसुदेव की भी रोहणी एवं देवकी ये दो रानियां थीं।" .. (६) उत्तराध्ययनसूत्र में यह भी उल्लेख आता है कि विधवा स्त्री कभी-कभी अन्य पुरूष के साथ भी चली जाती थी, किन्तु इस सन्दर्भ में यह ज्ञातव्य है कि विधवा का अन्य पुरुष के साथ जाना निन्दनीय कृत्य ही माना जाता था।"
(१०) उत्तराध्ययनसूत्र में यह भी देखने को मिलता है कि जब स्त्री मन से एक पुरूष को पति के रूप में स्वीकार कर लेती थी तब उसके पश्चात् वह अन्य पुरुष की कल्पना को भी पाप/अनुचित मानती थी। राजीमती. नेमिकुमार के लौट जाने पर उनके मार्ग का ही अनुसरण करती है। वह अन्य पुरूष को पति के रूप में स्वीकार नहीं करती है।
(११) तत्कालीन युग में प्रेम-परिणय भी होते थे। यह बात उत्तराध्ययनसूत्र के आठवें अध्ययन की कथावस्तु से उजागर होती है। कपिल ब्राह्मण एक दासी के प्रेम में आसक्त था। प्रेम सम्बन्धों में जाति का ध्यान भी नहीं रखा जाता था।
१७ उत्तराध्ययनसूत्र - २२/६,१०।
उत्तराध्ययनसूत्र - २२/१७ । १६ उत्तराध्ययनसूत्र - १६/३ ।
उत्तराध्ययनसूत्र - १६/१1 उत्तराध्ययनसूत्र - २२/२ । २ उत्तराध्ययनसूत्र - १३/२५ । ३ उत्तराध्ययनसूत्र - २२/२६ ।
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