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________________ विवाह क्या है इसे स्पष्ट करते हुये डॉ. सुदर्शनलाल जैन ने लिखा है: 'स्त्री और पुरूष के मधुर मिलन को एक सूत्र में बांधने वाली सामाजिक प्रथा विवाह है।21 विवाह शब्द की व्युत्पत्तिपरक व्याख्या करने पर विशेषेण वाहयति संचालयति इति विवाहः' अर्थात् जिसका विशेषरूप से वहन/संचालन किया जाता है वह विवाह है। उत्तराध्ययनसूत्र में प्राप्त विवाहसम्बन्धी चर्चा को हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं (१) सामान्यतः वर एवं कन्या दोनों के माता-पिता, अभिभावक या अन्य परिवारजन विवाह प्रस्ताव को रखते एवं तय करते थे। उत्तराध्ययनसूत्र के बाईसवें अध्ययन में यह उल्लेख है कि भगवान अरिष्टनेमि के युवा हो जाने पर उनके अग्रज. श्रीकृष्ण ने नेमिकुमार के विवाहसम्बन्ध के लिये उग्रसेन की पुत्री राजीमती की याचना की थी। (२) उत्तराध्ययनसूत्र के काल में कुछ राजकन्यायें भेंट स्वरूप भी दी जाती थीं। यह तथ्य इस बात से सिद्ध होता है कि सर्वगुणसम्पन्न नेमिकुमार को अपनी राजपुत्री देने के लिये उग्रसेन राजा का यह कहना कि यदि कुमार यहां आये तो मैं अपनी कन्या उन्हें दे सकता हूं। (३) देवता की प्रेरणा के द्वारा भी पाणिग्रहण किया जाता था अर्थात् देवता यह निर्धारित कर देते थे कि किसका विवाह किसके साथ सम्पन्न किया जाय। उत्तराध्ययनसूत्र के बारहवें अध्ययन में यह उल्लेख आता है, जिसमें यक्ष राजकुमारी भद्रा का विवाह, हरिकेशीमुनि के साथ करने को कहता है। (४) विदेशयात्रा पर गये व्यापारी का विवाह उन देशों में भी हो जाता था। पालित नामक श्रावक व्यापार के लिये जब पिहुण्ड नगर जाता है तो वहां का एक व्यापारी अपनी पुत्री का विवाह उससे कर देता है। (५) उत्तराध्ययनसूत्र के इक्कीसवें अध्ययन में यह उल्लेख मिलता है कि समुद्रपाल के पिता ने उसके लिये एक रूपिणी नाम की कन्या ला दी। अतः यह सिद्ध होता है कि माता-पिता अपने पुत्र के लिये कन्या पसन्द करते थे। २१ उत्तराध्ययनसूत्र : एक परिशीलन पृष्ठ २२ उत्तराध्ययनसूत्र - २२/६ । २३ उत्तराध्ययनसूत्र - २२/८ । २४ उत्तराध्ययनसूत्र - १२/२१ । २५ उत्तराध्ययनसूत्र - २१/३। २६ उत्तराध्ययनसूत्र - २१/७। Jain Education International For Personal & Private Use Only ' www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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