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________________ शुक्लध्यान की अनुप्रेक्षा (१) अनन्तवृत्तिता अनुप्रेक्षा - संसार परम्परा की अनन्तता का विचार करना अनन्तवृत्तिता अनुप्रेक्षा है; (२) विपरिणाम अनुप्रेक्षा (३) अशुभ अनुप्रेक्षा (४) उपाय अनुप्रेक्षा - ५२१ 1 Jain Education International वस्तुओं के विविध परिणामों का और उनकी क्षणिकता का चिन्तन करना विपरिणाम अनुप्रेक्षा है; संसार, शरीर आदि की अशुचिता का चिन्तन करना अशुभ अनुप्रेक्षा है; राग-द्वेष रूप दोषों का चिन्तन करना उपाय अनुप्रेक्षा है। १३. २ वासनाओं का दमन हो या निरसन ? मानव-व्यक्तित्व अनेक क्षमताओं से सम्पन्न है। उनमें से एक ऐन्द्रिक क्षमता भी है। आध्यात्मिक विकास की यात्रा में ऐन्द्रिक - क्षमता सहायक भी होती है और बाधक भी । इन्द्रियों की क्षमता का समुचित दिशा में उपयोग करने पर वे साधना में सहायक बन जाती हैं एवं उनका अनुचित दिशा में उपयोग करने पर बाधक बन जाती हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में इन्द्रियसंयम एवं इन्द्रियदमन पर विशेष बल दिया गया है। इस में प्रयुक्त 'दमन' शब्द यह सोचने को विवश करता है कि वासनाओं का दमन होना चाहिये या निरसन ? इस प्रश्न के उत्तर से पूर्व यहां यह जानना भी हमारे लिये आवश्यक है कि दमन क्या है, निरसन क्या है, तथा दमन और निरसन में अन्तर क्या है ? मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने पर यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत होता है कि अशुभ वृत्तियों से युक्त होने की तथा शुभप्रवृत्तियों में संलग्न होने की प्रक्रिया क्या है। अशुभप्रवृत्तियों (वासनाओं) का दमन करना चाहिये या निरसन? इसका समाधान हम विश्लेषण द्वारा प्रस्तुत करेंगे। सामान्यतः दमन शब्द का प्रयोग बलपूर्वक होने वाले निरोध के अर्थ में किया जाता है। संस्कृतहिन्दीकोश में इस शब्द के अनेक अर्थ प्राप्त होते हैं उनमें से कुछ निम्न हैं – दबाना, नियन्त्रित करना, निरावेश, शान्त, आत्मसंयम, वश में करना For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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