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ध्यान
भारतीयपरम्परा में ध्यान साधना का गौरवपूर्ण स्थान है। ध्यान पद्धति भारत की एक प्राचीन पद्धति है। यह तथ्य हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों की खुदाई में प्राप्त अवशेषों से भी प्रमाणित हो चुका है।
___ जैनपरम्परा में ध्यान साधना को प्रमुख स्थान दिया गया है। सभी तीर्थकरों की प्रतिमायें सदा ध्यान मुद्रा में अवस्थित होती हैं। आज तक कोई भी जिनप्रतिमा ध्यान मुद्रा के अतिरिक्त अन्य किसी भी मुद्रा में प्राप्त नहीं हुई है। चाहे वह प्रतिमा हजारों वर्ष प्राचीन हो या आज निर्मित हुई हो; सब प्रतिमायें ध्यानस्थ अवस्था में ही होती हैं। यह तथ्य भी जैनपरम्परा में ध्यान के विशिष्ट महत्त्व को प्रस्तुत करता है।
प्राकृतसाहित्य के प्राचीनतम ग्रन्थ 'आचारांग', 'उत्तराध्ययनसूत्र' आदि में ध्यान के महत्त्व पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला गया है।''
ऋषिभाषितसूत्र में संक्षिप्त एवं सारगर्भित रूप से ध्यान के महत्त्व को प्रस्तुत करते हुये लिखा है कि शरीर में जो स्थान मस्तिष्क का है, साधना में वही स्थान ध्यान का है।
मस्तिष्क, मानव शरीर का महत्त्वपूर्ण अंग है। उसके निष्क्रिय होने पर जीवन का कोई अर्थ नहीं रहता है; उसी प्रकार ध्यानसाधना के अभाव में जैनसाधना. का कोई अर्थ नहीं रह जाता है । शुक्लध्यान के चतुर्थचरण में पहुंचे बिना मुक्ति सम्भव नहीं होती है।
उत्तराध्ययनसूत्र और ध्यान उत्तराध्ययनसूत्र में ध्यान को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। ध्यान के महत्त्व को प्रकट करते हुए इसके छबीसवें अध्ययन में कहा गया है कि प्रत्येक श्रमण साधक को दिन और रात्रि के दूसरे प्रहर में नियमित रूप से ध्यान करना चाहिये।
- (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड १, पृष्ठ ६७०);
७० (क) आचारांग १/६/१/१४ एवं १५ . (ख) ऋषिभाषित - उत्तराध्ययनसूत्र - २३,
(ग) उत्तराध्ययनसूत्र १/२६/२३ । ७१ उत्तराध्ययनसूत्र २६/१२ एवं १९ ।
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