________________
लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की है। यह धर्मलेश्या है, अतः सुगतिप्रदायक है । "
५०६
५. पद्मलेश्या
इस लेश्या में आत्म परिणाम विशुद्ध होते हैं । यह धर्मलेश्या का द्वितीय चरण है। इसके वर्ण का प्रतिपादन करते हुए उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि इसका रंग हरिताल और हल्दी के खण्ड तथा सण एवं असण के पुष्प के समान पीत (पीला) होता है। इसका रस उत्तम सुरा और फूलों से बने विविध रसों से अनन्तगुणा अधिक अम्ल कसैला होता है। 7 इसकी गन्ध एवं स्पर्श तेजोलेश्यां के सदृश है तथा परिणाम कृष्णलेश्या में वर्णित परिणामवत् है।
पद्मलेश्या सम्पन्न व्यक्ति के जीवन में क्रोध, मान, माया, लोभ की अत्यल्पता होती है। उसका चित्त प्रशान्त होता है। वे जितेन्द्रिय, अल्पभाषी एवं ध्यान. साधना में रत होते हैं। इस लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट स्थिति मुहूर्त अधिक दस सागरोपम है। यह लेश्या सुगति का कारण है।
·
६. शुक्ललेश्या
शुक्ललेश्या श्रेष्ठतम लेश्या है। इसका वर्ण श्वेत माना गया है। श्वेत रंग सात्विक एवं शुद्ध विचारों का प्रतीक होता है। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार इसका वर्ण शंख, अंकमणि (स्फटिक जैसा श्वेत रत्नविशेष ), कुन्दपुष्प, दुग्धधारा तथा रजतहार के समान श्वेत है। इसका रस खजूर, दाख, क्षीर, खांड और शक्कर के मधुर रस से अनन्तगुणा मधुर है। शुक्ललेश्या वाले व्यक्ति का चित्त अत्यन्त प्रशान्त होता है; वे धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान में निरत रहते हैं। इनका मन, वचन एवं काया पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है। इनकी प्रवृत्ति पूर्ण विवेक से संचालित होती है।" सबसे विशिष्ट बात यह है कि यह लेश्या सरागी आत्मा के साथ साथ वीतरागी आत्मा में भी प्राप्त होती है।
५६ उत्तराध्ययनसूत्र ३४ /१७, १६, २७, २८, ३७ एवं ५७ ।
५७ उत्तराध्ययनसूत्र ३४ / ८ एवं १४ ।
५८ उत्तराध्ययनसूत्र ३४ / २६, ३०, ३८ एवं ५७ ।
५६ उत्तराध्ययनसूत्र ३४ / ६, १५, ३१ एवं ३२ ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org