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________________ ५०४ योग क्या है? इसे स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि मन, वचन और काया की जो प्रवृत्तियां हैं वे योग हैं और इन प्रवृत्तियों के निमित्त रूप पुद्गल समूह योगवर्गणा है, फिर भी यह लेश्या योगवर्गणा से इस अर्थ में भिन्न है कि योगवर्गणा योगात्मक प्रवृत्तियों की प्रेरक है जबकि लेश्या उन प्रवृत्तियों के साथ रहते हुए शुभाशुभ भावरूप है अर्थात् जो योग रूप प्रवृत्ति में शुभाशुभ रंग देती हैं, वे लेश्या हैं। उदाहरण के रूप में योग को कपड़ा और लेश्या को रंग कहा जा सकता है। फलतः योग के सद्भाव में ही लेश्या का सद्भाव होता है तथा योग के अभाव में लेश्या का अभाव होता है। दूसरे शब्दों में वर्गणाओं का प्रवृत्ति रूप स्थूल परिणमन योग है तथा उसके मूल में शुभाशुभ भाव रूप सूक्ष्म परिणमन लेश्या हैं। कर्मनिस्यन्द लेश्या कर्म के उदय से उत्पन्न जीव की भावधारा लेश्या कहलाती है। शान्त्याचार्य कृत टीका में इसे स्पष्ट करते हुए कहा गया है: 'कर्मनिस्यन्दो लेश्या यतः कर्म स्थिति हेतवो लेश्या' अर्थात् जिसके द्वारा कर्म की स्थिति का निर्धारण होता है वह लेश्या है। वस्तुतः कर्मों के बन्ध में योग की अपेक्षा शुभाशुभ भावों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। इन भावों के आधार पर ही स्थिति बन्ध होता है। अतः कर्मों के स्थितिबन्ध का हेतु लेश्या है। योग से कर्म के प्रदेश और प्रकृति का आश्रव होता है और कषाय से स्थिति और अनुभाग बन्ध होता है। उसमें शुभाशुभ भाव रूप लेश्या वह रस डालती है जिससे स्थितिबन्ध होता है । जिस प्रकार आटा, बेसन, शक्कर आदि के होने पर भी जब तक घी नहीं होता है, तब तक लड्डू नहीं बनता । इसी प्रकार लेश्या कर्मबन्ध में घी रूप स्निग्धता है, उसके सद्भाव में ही कर्मबन्ध होता है। अतः लेश्या कर्मद्रव्य का एक विशिष्ट प्रकार है। इस प्रकार लेश्या योग और कषाय दोनों से भिन्न है। जिस प्रकार योग के सद्भाव में लेश्या का सद्भाव है उसी प्रकार विशिष्ट कर्मद्रव्य के सद्भावों में ही लेश्या सम्भव है । कषाय से वह इस अर्थ में भिन्न है कि कषाय का अभाव होने पर भी तेरहवें गुणस्थान में शुक्ललेश्या का सद्भाव माना गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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