________________
वह तप है। तप की विस्तृत चर्चा इसी ग्रन्थ के नवम अध्याय 'उत्तराध्ययनसूत्र का साधनात्मक पक्ष : मोक्ष मार्ग' के अन्तर्गत की गई है।
४८३
उत्तराध्ययनसूत्र में स्वाध्याय के पांच अंगों एवं उनकी उपलब्धियों की विस्तृत चर्चा की गई है। स्वाध्याय के त्रैकालिक महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए. वृहत्कल्पभाष्य में यह कहा गया है: 'नवि अत्थि, व नवि अ होही सज्झाय सम . तवोकम्मं स्वाध्याय के समान तप न है और न कभी होगा । ! स्वाध्याय तप का सर्वश्रेष्ठ रूप है।“)
स्वाध्याय को सुख प्राप्ति एवं दुःख मुक्ति का महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध करते हुए कहा गया है: 'सम्पूर्ण ज्ञान के प्रकाशन से, अज्ञान और मोह के परिहार से और राग-द्वेष के पूर्ण क्षय से जीव एकान्त रूप मोक्ष को प्राप्त करता है'।7 गुरूजनों की सेवा करना, अज्ञानी लोगों के सम्पर्क से दूर रहना, सूत्र और अर्थ का चिन्तन करना, स्वाध्याय करना और धैर्य रखना ये दुःख-मुक्ति के अमोघ उपाय हैं। वस्तुत: ज्ञान ही जीवन का प्रकाश है; कष्टों से मुक्ति का उपाय है । कहा गया है: 'अज्ञानं खलु कष्टं' – अज्ञान से बढ़कर कोई कष्ट नहीं है – अज्ञान ही कष्ट है।
स्वाध्याय की परम्परा अति प्राचीन काल से चली आ रही है। 'शतपथ ब्राह्मण' में स्वाध्याय के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है: 'स्वाध्याय और प्रवचन से मनुष्य का चित्त एकाग्र हो जाता है; वह स्वतन्त्र होता है; उसे नित्य धन प्राप्त होता है; वह सुख से सोता है; स्वयं का चिकित्सक बन जाता है; इन्द्रियों पर संयम कर लेता है; उसकी प्रज्ञा प्रखर हो जाती है और उसे यश मिलता है। 48
—
औपनैषदिक शिक्षा का भी महत्त्वपूर्ण सूत्र रहा है: 'स्वाध्यायान् मा प्रमदः' अर्थात् स्वाध्याय में प्रमाद मत करना। शिष्य जब गुरू के आश्रम से विदाई लेता था, तब गुरू द्वारा यह शिक्षा शिष्य को दी जाती थी। (स्वाध्याय एक ऐसी प्रवृति है जो गुरू की अनुपस्थिति में भी गुरू का कार्य करती है।'
४६ उद्धृत् - 'सागर जैन विद्या भारती, भाग १, पृष्ठ ३८ ।
४७ उत्तराध्ययनसूत्र - ३२ / २ ।
४८ शतपथ ब्राह्मण- ११-५,७
( स्वाध्याय तनाव से मुक्ति दिलाता है । इस विषय में गांधीजी के उद्गार हैं: 'मैं जब भी किसी कठिनाई में होता हूं, मेरे सामने कोई जटिल समस्या
Jain Education International
·
- उद्धृत् - 'जैन अंगशास्त्र में मानव व्यक्तित्व विकास' पृष्ठ२२५।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org