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(५) मोक्ष विनय – मोक्ष के अनुकूल प्रवृत्ति करना मोक्ष विनय है। उत्तराध्ययनसूत्र की टीका में इसके पांच भेद किये गये हैं - ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय, तपविनय और औपचारिकविनय।
औपपातिकसूत्र में विनय के निम्न सात प्रकार बतलाये गये हैं - (१) ज्ञानविनय (२) दर्शनविनय (३) चारित्रविनय (४) मनविनय (५) वचनविनय (६) कायविनय और (७) लोकोपचारविनय ।
इसके अतिरिक्त आवश्यकचूर्णि आदि में भी विनय के भेद-प्रभेदों की विस्तृत चर्चा की गई है। उन सभी का यहां वर्णन करना अतिप्रसंग का कारण होगा। अतः हम यही कहकर विनय के प्रकारों की चर्चा को विराम देना चाहेंगे कि विनय के उपरोक्त समस्त प्रकारों को निम्न दो भागों में विभाजित किया जा सकता है - (१) लौकिकविनय और (२) लोकोत्तरविनय ।
.. 'लौकिक विनय' विनय का व्यवहारिक पक्ष है तो 'लोकोत्तर विनय' आध्यात्मिक पक्ष है।
लौकिक विनय के अन्तर्गत - लोकोपचार विनय, स्वार्थ अप्रतिलोम विनय, अर्थ विनय, काम विनय, भय विनय आदि सभी का समावेश किया जा सकता है तथा मोक्ष विनय या ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप रूप विनय लोकोत्तर विनय में समाविष्ट हो सकते हैं।
विनीत एवं अविनीत शिष्य के लक्षण
(विनय का अर्थ व्यापक है मात्र तन को झुकाना ही विनय धर्म नहीं है, (शारीरिक रूप से तो नृत्यांगना एवं नौकर भी झुकते हैं। पर उनका झुकना - स्वार्थ-सम्बद्ध होने से कोई अर्थ नहीं रखता; जबकि महाश्रमण बाहुबली के मन का झुकना इतना चमत्कारिक सिद्ध हुआ कि उन्हें केवलज्ञान उपलब्ध हो गया।
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