________________
४७५
विनय के प्रकार जैन साहित्य में विनय की विविध व्याख्या के साथ इसके विविध प्रकारों का भी वर्णन किया गया है। यद्यपि हमारे शोधग्रन्थ के आधार उत्तराध्ययनसूत्र में विनय के प्रकारों की कहीं कोई स्पष्ट चर्चा उपलब्ध नहीं होती है फिर भी इसके टीका साहित्य तथा औपपातिकसूत्र, विशेषावश्यकभाष्य आदि ग्रन्थों में विनय के अनेक प्रकारों का उल्लेख किया गया है। ये संक्षेप में निम्न हैं -
(७) लोकोपचार विनय - शिष्टाचार का पालन, पारिवारिक एवं सामाजिक अनुशासन का पालन, अतिथि पूजा, वृद्धजनों का सम्मान आदि लोकोपचार विनय के अन्तर्गत आते हैं।
औपपातिकसूत्र में लोकोपचार विनय के सात भेद किये गये हैं - (क) अभ्यासवृत्तिता - गुरूजन के समीप रहना; . (ख) परछन्दानुवृत्तिता - दूसरों के आदेशों का अनुवर्तन करना; (ग) कार्यहेतु - लक्ष्यसिद्धि के अनुकूल कार्य करना; (घ) कृतप्रतिक्रिया - किये हुए उपकार के प्रति प्रत्युपकार करने की
भावना रखना; (ड) आर्तगवेषणा _ - आर्त एवं पीड़ित व्यक्ति की खोज करके उनके दुःख
दूर करना; (च) देशकालज्ञता - देश एवं काल की मर्यादा को जानना; (छ) स्वार्थ अप्रतिलोमता - यथार्थ स्वहित को समझकर उसकी सिद्धि का
प्रयत्न करना। (२) अर्थ विनय- प्रयोजन की सिद्धि हेतु विनय करना अर्थ विनय कहलाता है। (३) काम विनय- कामनाओं की पूर्ति के लिये विनय करना काम विनय है। (४) भय विनय - भयवश नम्रता का व्यवहार करना भय विनय है।
३२ (क) उत्तराध्ययनसूत्र टीका-पत्र - १६
(ख) औपपातिकसूत्र -४०
- (शान्त्याचार्य); - (उवंगसुत्ताणि, लाडनूं, खंड १, पृष्ठ २४);
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org