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विनय का महत्त्व विनय आत्मा का गुण है यह अविरतिधर (संसारी) एवं सर्वविरतिधर (संयमी) दोनों आत्माओं में पाया जाता है। यह अन्तरंग में भी होता है तथा साथ ही व्यवहार में भी प्रकट होता है।
उत्तराध्ययनसूत्र में विनीत शिष्य के माध्यम से विनय का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए लिखा है कि विनीत शिष्य पूज्यशास्त्र होता है अर्थात् उसके शास्त्रीयज्ञान का सर्वत्र सम्मान होता है; उसके सारे संशय. मिट जाते हैं। वह गुरू के मन को प्रिय होता है। वह आचार सम्पदा से सम्पन्न होता है अर्थात् दशविध समाचारी से सम्पन्न होता है और तप समाचारी एवं समाधि से संवृत होकर पंचमहाव्रतों का पालन कर महान तेजस्वी होता है।28.
विनय की महत्ता को प्रकट करते हुए आचार्य वट्टकेर ने मूलाचार में लिखा है: 'शिक्षा का फल. विनय है और विनय का फल सभी का कल्याण है, विनय विहीन व्यक्ति की सारी शिक्षा व्यर्थ है। इसमें विनय की पृष्ठभूमि में रहे हुए निम्न गुणों का उल्लेख भी किया गया है ।"
आत्मशुद्धि, निर्द्वन्द्व, ऋजुता, मृदुता, लाघव, भक्ति, प्रहलादकरण, कीर्ति, मैत्री इत्यादि गुणों के साथ विनीत आत्मा अपने अभिमान का निरसन, गुरूजनों का बहुमान, तीर्थंकर की आज्ञा का पालन और गुणों का अनुमोदन करती है।
- विनीत आत्मा को सर्वोत्कृष्ट स्थान देते हुये उत्तराध्ययन सूत्रकार ने तो यहां तक कह दिया कि जिस प्रकार पृथ्वी समस्त प्राणियों के लिये आधारभूत होती है, उसी प्रकार विनीत व्यक्ति धर्माचरण करने वालों के लिये आधारभूत होते
दशवैकालिकसूत्र में विनय के महत्त्व को अत्यन्त संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि अविनीत को विपत्ति तथा विनीत को सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
. निष्कर्षतः उत्तराध्ययनसूत्र में विनय का महत्त्व अत्यन्त व्यापक रूप से प्रतिपादित किया गया है। इसका प्रथम विनयश्रुत अध्ययन इस बात का श्रेष्ठ प्रमाण है।
२८ उत्तराध्ययनसूत्र - १/४७ । २६ मूलाचार - ५/१६० एवं १६१ (पृष्ठ २५२) । ३० उत्तराध्ययनसूत्र - १/४५ । ३१ दशवकालिक - ६/२१|
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