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उत्तराध्ययनसूत्र के टीकाकार ने 'विनय' शब्द के दो संस्कृत रूप किये हैं विनय और विनत। उन्होंने विनय का अर्थ आचार, नियम तथा विनत का अर्थ नम्रता किया है।
विनय शब्द की विविध व्याख्यायें
उत्तराध्ययनसूत्र की टीका में 'विनय' शब्द की अनेक व्याख्यायें उपलब्ध होती हैं। उनमें से कुछ निम्न हैं -
'विनीयत अपनीयतेऽनेन कर्मेति विनयः' अर्थात् जिसके द्वारा कर्मों का अपनयन किया जाय वह विनय है।
'विशेषेण नयनीति विनयः' - जो विशेषता की ओर ले जाये वह विनय है।
'पूज्येषु आदरः विनयः' - पूज्य या सम्माननीय व्यक्ति के प्रति आदर पूर्ण व्यवहार करना विनय है।
'गुणाधिकेषु नीचैर्वृत्ति विनयः' – गुणवान व्यक्तियों के प्रति नम्रता का भाव विनय है।
रत्नत्रयवस्तु नीचैर्वृत्ति विनयः' – रत्नाधिक अर्थात् ज्ञान, दर्शन और चारित्र आदि गुणों से सम्पन्न आत्मा के प्रति विनम्रवृत्ति रखना विनय है। - . 'कषाय-इन्द्रिय विनयनं विनयः' – यहां विनय का आशय नियन्त्रण है अर्थात् (जिसके द्वारा कषाय एवं इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखा जाय वह विनय कहलाता है। प्रसंगान्तर से इसे आचार-नियम का सूचक भी कह सकते हैं। . 'विशिष्टिो विविधो वा नयो विनयः' – विविध या विशिष्ट प्रकार के नय या सिद्धान्त विनय कहलाते हैं।
'विशिष्टो विविधो वा नयो नीति इति विनयः' – विशिष्ट या विविध प्रकार की नीति अर्थात् आचार व्यवहार विनय है।
२३ उत्तराध्ययनसूत्र टीका - पत्र १६
- (शान्त्याचार्य)
२४ उत्तराध्ययनसूत्र टीका - पत्र १६
- (शान्त्याचार्य)
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