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शिक्षक की योग्यता उत्तराध्ययनसूत्र में गुरू की क्या योग्यता होनी चाहिए इसका स्पष्ट निर्देश देखने को नहीं मिलता है। फिर भी शिक्षक के लिये प्रयुक्त शब्द ही उसकी योग्यता का प्रतिपादन कर देते हैं जैसे प्रथम अध्ययन की गाथाओं में शिक्षक के लिये जहां प्रायः 'बुद्ध' शब्द का प्रयोग हुआ है, वहीं आचार्य, कृतकृत्य एवं गुरू शब्द का प्रयोग भी दृष्टिगोचर होता है।" शिक्षक के लिए प्रयुक्त इन विशेषणों से उसकी महत्ता एवं योग्यता के संकेत अवश्य मिल जाते हैं।
बोध को प्राप्त करने वाला बुद्ध होता है। आचारसम्पन्न होना यह आचार्य शब्द का अर्थ है। कृतकृत्य का अर्थ है - वन्दना करने योग्य होना। कृत कृत्य का एक और अर्थ - जिसके लिए करणीय कुछ शेष नहीं रहा हो, ऐसा वन्दनीय साधक भी होता है।
उत्तराध्ययननियुक्ति में आचार्य को दीपक के समान बतलाया है जो स्वयं प्रकाशमान होता हैं और दूसरों को भी प्रकाशित करता है।")
निशीथभाष्य में आचार्य को राग-द्वेष से मुक्त शीतगृह के समान कहा गया है।
- जैनदर्शन के अनुसार आचार्य ३६ गुणों से युक्त होते हैं। आचार्य के ..३६ गुण सम्बोध सप्ततिका' के अनुसार निम्न हैं -
. प्रतिरूपादि चौदह गुण (प्रभावशाली व्यक्तित्त्व से युक्त, तेजस्वी, युगप्रधान, मधुरवक्ता, गम्भीर, धृतिमान, कुशलउपदेशक, आचारसम्पन्न, अप्रतिस्वभावी, . सौम्य, अभिग्रहमतिक, अल्पभाषी, स्थिरस्वभावी एवं शान्तहृदयी); क्षमादि दसविध धर्म (क्षमा, आर्जव, मार्दव, त्याग, तप, संयम, सत्य, शौच, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य), एवं
१६ उत्तराध्ययनसूत्र - १/८, १७,२७,२६,४०,४२, ६/३; १०/३६, ३७; ११/३; १४/५१;१८/२१, २४, ३२; २३/३, ७,
२५/३२, ३५/१ एवं ३६/२६८ । १७(क) उत्तराध्ययनसूत्र - १/२०,४०,४१,४३, ८/२२; (ख) उत्तराध्ययनसूत्र - १/१८, ४४,४५; १४/१५; ३२/१०८%; (ग) उत्तराध्ययनसूत्र- १/२,३,१६,२०; ७/६, १७/१०; २६/७,८,२१,२२,३७,४०,४१,४२,४५, ४८ से ५१; ३०/३२, ३२/३ । " उत्तराध्ययनसूत्र-टीका-पत्र - ५४
__ - (शान्त्याचार्य) १६ उत्तराध्ययननियुक्ति -
- (नियुक्तिसंग्रह, पृष्ठ ३६५) । २० निशीथ भाष्य - २७६४
- (उद्धृत् - प्राकृतसूक्ति कोश पृष्ठ ४७)।।
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