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जैनागम उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार विद्यार्थी को योग्य शिक्षा के लिए गुरुकुल में अर्थात् गुरूजनों के समीप रहना आवश्यक है। साथ ही उसे विनम्र एवं मधुर भाषी होना चाहिए और गुरु के आदेशों के परिपालन हेतु तत्पर होना चाहिये।
इस सूत्र में शिक्षार्थी की योग्यता पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए उसके निम्न आठ गुणों का उल्लेख किया गया है -
(१) अति हास्य नहीं करना; (२) इन्द्रियां एवं मन पर संयम करना; (३) किसी के मर्म का प्रकाशन नहीं करना; (४) चारित्रवान होना; (५) सुशील होना; (६) रसों में आसक्त न होना; (७) क्रोध न करना; (८) सत्य में रत रहना।"
शिक्षा की बाधाएं
उत्तराध्ययनसूत्र में शिक्षा प्राप्ति में सहायक एवं बाधक दोनों प्रवृत्तियों का वर्णन किया गया है। इसका उद्देश्य व्यक्ति में हेय एवं उपादेय का विवेक जागृत करना है। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार इन पांच कारणों से व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त नहीं होती -
((१) मान; (२) क्रोध; (३) प्रमाद; (४) आलस्य और (५) रोग।
इन बाधाओं पर विजय प्राप्त करने वाला व्यक्ति ही शिक्षा का अधिकारी होता है।
१३ उत्तराध्ययनसूत्र - ११/१४ । १४ उत्तराध्ययनसूत्र - ११/ ४ एवं ५। १५ उत्तराध्ययनसूत्र - ११/३ ।
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