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________________ ४६८ __प्रत्येक शिक्षापद्धति इन दो प्रश्नों पर निर्भर रहती है - (१) वह व्यक्ति को क्या मानती है ? (२) वह व्यक्ति को क्या बनाना चाहती है ? व्यक्ति की योग्यता - जैन शिक्षापद्धति के अनुसार व्यक्ति क्षायोपशमिक योग्यता वाला है। अर्थात् - (१) प्रत्येक व्यक्ति में अपने ज्ञान को अनावरित करने की क्षमता है; (२) प्रत्येक व्यक्ति में चारित्रिक विकास की क्षमता है; (३) प्रत्येक व्यक्ति में अपने स्वभाव को परिवर्तित करने की क्षमता है; (४) प्रत्येक व्यक्ति में ज्ञान शक्ति को वृद्धिगंत करने की क्षमता है। जैनदर्शन की मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति में अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन अनन्तसुख और अनन्तवीर्य की क्षमता है किन्तु ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के कारण व्यक्ति की ये ज्ञानात्मक शक्तियां कुण्ठित हो जाती हैं। पर सम्यकपुरूषार्थ के द्वारा व्यक्ति इन कर्मों का क्षयोपशम कर सकता है अर्थात् इन शक्तियों का विकास कर सकता है। इस प्रकार अज्ञान के आवरण को हटाया जा सकता है; चारित्र का परिष्कार किया जा सकता है, स्वभाव में परिर्वतन किया जा सकता है तथा आत्मशक्ति का संवर्धन किया जा सकता है। व्यक्तित्व के विकास एवं पतन की इस परिकल्पना के साथ जैनदर्शन के चार घाती कर्मों का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। शिक्षा के अधिकारी . वैदिककाल में आचार्य अध्ययन उन्हें ही करवाते थे जिनकी अध्ययन .. के प्रति अभिरूचि होती थी। इसके विपरीत, जिनकी प्रतिभा ज्ञानप्राप्ति में असमर्थ होती थी, उन्हें अन्य रूचिकर कलाओं का शिक्षण दिया जाता था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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