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३. सामायिक प्रतिमा :
उत्तराध्ययनसूत्र की टीका में नियमित रूप से उभय संध्या अर्थात् प्रातःकाल एवं सायंकाल में सामायिक करने को सामायिक प्रतिमा कहा गया है; किन्तु उपासकदशांग की टीका के अनुसार प्रतिदिन तीन बार सामायिक करना सामायिक प्रतिमा है।"
४. पौषध प्रतिमा :
अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व दिनों में निरतिचार, प्रतिपूर्ण (दिन-रात का) पौषध करना पौषध प्रतिमा है। गृहस्थ साधक प्रवृत्तिमय जीवन में रहते हुए भी पर्व दिनों में पौषध करके पूर्ण निवृत्तिमय जीवन जीता है। प्रत्येक उत्तरवर्ती प्रतिमा में पूर्ववर्ती प्रतिमा के नियम का अवश्य पालन करना होता है।
५. प्रतिमा-प्रतिमा :
इस प्रतिमा को कायोत्सर्ग प्रतिमा या दिवामैथुनक्रित प्रतिमा भी कहा जाता है। इसमें पांच विशेष नियम पालन किये जाते हैं- (१) स्नान नहीं करना (२) रात्रिभोजन नहीं करना (३) धोती की लांग नहीं लगाना (४) दिन में ब्रह्मचर्य का पालन करना तथा रात्रि में मैथुन की मर्यादा निश्चित करना और (५) अष्टमी, चतुर्दशी को कायोत्सर्ग करना।
६. ब्रह्मचर्य प्रतिमा :
पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना ब्रह्मचर्य प्रतिमा है।
७०. उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र ३०१७ । ७१. उपासकदशांग टीका पत्र १५ ।
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