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किये जाते है। जब कि सामायिक व्रत, देशावकासिक व्रत, पौषधोपवासव्रत एवं अतिथिसंविभाग व्रत एक नियत समय के लिये ग्रहण किये जाते हैं ।
देशावकाशिकव्रत के पांच अतिचार :
( १ ) आनयन प्रयोग : अपने मर्यादित क्षेत्र के बाहर से वस्तु लाना या मंगवाना।
(२) प्रेष्य प्रयोग : सेवक आदि के द्वारा मर्यादित क्षेत्र से बाहर वस्तु भिजवाना ।
(३) शब्दानुपात : स्वीकृत मर्यादा के बाहर शाब्दिक आदेश आदि के द्वारा.
काम करवाना।
(४) रूपानुपात : संकेत, इशारे आदि के द्वारा मर्यादित क्षेत्र से बाहर खड़े व्यक्ति से कार्य करवाना।
(५) पुद्गल प्रक्षेप : यहां पुद्गल से तात्पर्य है – कंकड़, पत्थर आदि को फेंककर किसी को अपने पास बुलाना, उसे अपना अभिप्राय समझाना ।
इस प्रकार संकेत के द्वारा एवं कंकड़ आदि फेंककर अपने कार्य की सिद्धि करना देशावकासिक व्रत के दोष हैं
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११. पौषधोपवास
इसमें दो शब्द है पौषध + उपवास । उपासकदशांग सूत्र की टीका में पौषध शब्द का अर्थ पर्वकाल (अष्टमी, चतुर्दशी आदि) तथा उपवास का अर्थ चारों प्रकार के आहार का त्याग किया गया है इस प्रकार पर्वकाल में चारों प्रकार के आहार का त्याग करना पौषधोपवास है। इसमें उपवास के साथ-साथ पापमय प्रवृत्तियों का भी त्याग किया जाता है।
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र के अनुसार एक दिन-रात के लिये चारों प्रकार के आहार के त्याग, ब्रह्मचर्य के पालन, तथा मणि, स्वर्ण, पुष्पमाला, सुगन्धित पदार्थ, तलवार, हल, मूसल आदि सावद्ययोगों के त्याग करने को पौषधोपवास कहा है।
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