________________
४५०
(४) संयुक्ताधिकरण : आवश्यकता के बिना हिंसक साधनों का संग्रह करके रखना संयूक्ताधिकरण है। जैसे बंदूक में कारतूस या बारूद भरकर रखना । इसका तात्पर्य यही है कि हिंसा के साधन तैयार होने पर अनर्थ की संभावना अधिक रहती
(५) उपभोगपरिभोगातिरेक : उपभोग-परिभोग के साधनों का आवश्यकता से अधिक संचय करना उपभोग-परिभोगातिरेक है।
६. सामायिक व्रत 'सामायिक जैन साधना पद्धति का केन्द्र बिंदु है। इसकी साधना श्रमण जीवन पर्यन्त तथा श्रावक नियत समय तक करता है। यह श्रावक का प्रथम शिक्षाव्रत है। नियत समय तक हिंसादि पाप कार्यों का मन, वचन, काया से करने एवं . करवाने का त्याग करना श्रावक का सामयिक व्रत है।
उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्र में सामायिक व्रत की चर्चा आवश्यक के रूप में की गई है, साथ ही उस का मूल प्रतिपाद्य समभाव की साधना ही है।
सामायिक की साधना के लिये चार प्रकार की विशुद्धियां निर्धारित की गई हैं
(१) काल विशुद्धि (२) क्षेत्र विशुद्धि (३) द्रव्य विशुद्धि और (४) भाव विशुद्धि। (१) कालविशुद्धि : श्रमण की सामायिक आजीवन की होती है। अतः उनके लिये सामायिक का कोई काल निर्धारित नहीं किया गया है। किन्तु गृहस्थ साधक के लिये इसकी काल मर्यादा निश्चित की गई है।
सामायिक व्रत की समयावधि ४८ मिनट (एक मुहूर्त) की मानी जाती है। सामायिक हेतु समय-सीमा निर्धारित करने का आधार जैनाचार्यों की यह मान्यता है कि व्यक्ति एक विषय पर ४८ मिनट से अधिक अस्खलित रूप से ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता है। अतः सामायिक की काल मर्यादा ४८ मिनट की रखी गई है। किन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं है कि व्यक्ति एक से अधिक सामायिक नहीं कर सकता है। वह अंतराल से या निरन्तर रूप में भी एक से अधिक सामायिक कर सकता है, किन्तु प्रत्येक सामायिक की निर्धारित कालावधि ४८ मिनिट की ही होगी।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org