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डॉ. सागरमल जैन ने आगमों के आधार पर इसके पांच भेद प्रतिपादित किये हैं : (१) अहंकार (२) कषाय (३) विषय-चिंतन (४) निद्रा और (५)
विकथा।
(३) हिंसक उपकरणों का प्रदान : जिनसे हिंसा होती है वह शस्त्र, अस्त्र, आग, विष आदि हिंसा के साधनों को क्रोधाविष्ट व्यक्ति के हाथो में देना हिंसक उपकरणों का प्रदान है।
(४) पापकर्मोपदेश : पापकर्म हेतु उपदेश देना पापकर्मोपदेश है। जैसे किसी मानव या पशु को मारने या उसे परेशान करने के लिए किसी अन्य को उकसाना या पास में खड़े रहकर तमाशा देखना आदि । दिगम्बरसाहित्य में अनर्थदण्ड के पांच प्रकार उपलब्ध होते हैं । उनमें चार प्रकार तो उपर्युक्त ही है तथा पांचवां प्रकार दुःश्रुति है।
(५) दुःश्रुति : पुरूषार्थ के अनुसार समाधि को बढ़ाने वाली बरी कथाओं को सुनना, संग्रह करना एवं उनकी शिक्षा देना दुःश्रुति है। श्वेताम्बर संप्रदाय के ग्रन्थों में प्रमादाचरण के भेद के रूप में जिसे 'विकथा' कहा गया है उसे ही दिगम्बर परम्परा में दुःश्रुति कहा गया है। दुःश्रुति प्रमादाचरण का ही एक रूप है।
. इस प्रकार अनर्थदण्ड अर्थात् निष्प्रयोजन किये जाने वाले पापकर्मों का त्याग करना अनर्थदण्ड विरमण है।
अनर्थदण्ड के पांच अतिचार :
अनर्थदण्ड विरमण व्रत के निर्विघ्न पालन के लिये निम्न पांच बातों से बचना आवश्यक है :
(१) कन्दर्प : विकार-वासना उत्पन्न करने वाले वचन बोलना या सुनना। (२) कौत्कुच्य : आंख, मुंह, हाथ से अशोभनीय चेष्टा करना।
(३) मौखर्य : अधिक वाचाल होना अथवा हास्यादि के निमित्त अशालीन वचन बोलना मौखर्य है।
५६. जैन बौद्ध और गीता के आधार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग २, पृष्ठ २६० । ५७. पुरुषार्थ सिखयुपाय - १४५।
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