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________________ ४४० जिसके साथ विवाह नहीं हुआ हो, ऐसी स्त्री । इस आधार पर इसका अर्थ परस्त्रीगमन भी किया है। आचार्य अमोलकऋषि के अनुसार पाणीग्रहण होने से पहले ही जिस स्त्री के साथ वाग्दान संबंध हुआ है उसके साथ सम्पर्क करना भी अपरिगृहीतागमन अतिचार है। दूसरे शब्दों में अपरिगृहीता अर्थात् वह स्त्री जिस पर किसी का अधिकार नहीं है अर्थात् वेश्या के साथ समागम करना अपरिगृहीतागमन अतिचार है। ३. अनंगक्रीड़ा : उपासकदशांग को टीका के अनुसार कामसेवन के अंग जैसे योनि, लिंग आदि से भिन्न अंग जैसे स्तन, कक्षा, मुख आदि इनमें कामवश रमण करना अनंगक्रीड़ा है अर्थात् कामक्रीड़ा को उद्दीप्त करने वाली जैसे चुम्बन, आलिंगन आदि कामचेष्टायें करना अनंगक्रीड़ा अतिचार है। ४. परविवाहकरण : अपने परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त दूसरों के विवाह सम्बन्ध करवाना परविवाहकरण अतिचार है किन्तु कुछ आचार्यों के अनुसार व्रतगहण के पश्चात् दूसरा विवाह करना भी परविवाहकरण है। ५. कामभोगतीव्राभिलाषा : कामभोग की तीव्र अभिलाषा रखना कामभोगतीव्राभिलाषा अतिचार है। श्रोत्रेन्द्रिय एवं चक्षुन्द्रिय का विषय काम कहलाता है तथा घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय स्पर्शेन्द्रिय आदि के विषय भोग कहलाते हैं। इस प्रकार पांचों इन्द्रियों के विषय भोग की तीव्र आकांक्षा करना कामभोगतीव्राभिलाषा अतिचार है। एक अपेक्षा से काम उद्दीपन के लिये मादक पदार्थ का सेवन करना भी कामभोग तीव्राभिलाषा अतिचार ३४. जैनतत्त्वप्रकाश, पृष्ठ ६०३ । ३५. तत्वार्थ सूत्र पृ.१८८ (पं. सुखलालजी) ३६. उपासकदशांग टीका पत्र । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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