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वंदित्तुसूत्र में भी इन्हीं पांच अतिचारों का वर्णन किया गया है। तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार इनके क्रम व नाम निम्न हैं- १. मिथ्योपदेश २. असत्य दोषारोपण ३. कूटलेख क्रिया ४. न्यासापहार और ५. मर्मभेद अर्थात् गुप्त बात प्रकट करना।
___३. अचौर्य अणुव्रत श्रावक के इस तीसरे अचौर्य व्रत को 'स्थूल अदत्तादान विरमणव्रत' भी कहा जाता है। अदत्तादान का सामान्य अर्थ अदत्त अर्थात् बिना दी हुई वस्तु का ग्रहण करना है। आचार्य हरिभद्र सूरि ने शास्त्रवार्तासमुच्चय में कहा है कि स्वामी एवं जीव की आज्ञा के बिना दूसरे व्यक्ति की वस्तु का ग्रहण अदत्तादान है।
जैनाचार्यों ने स्थूल चोरी के निम्न रूप प्रतिपादित किये हैं - १. खत खननाः- सेंध लगाकर वस्तु ले जाना। २. गांठ काटना – बिना पूछे किसी की गांठ खोलकर वस्तु निकाल लेना; जेब काटना इसके अंतर्गत ही है। ३. ताला तोड़कर या नकली चाभी के द्वारा ताला खोल के वस्तुएं चुराना और ४. अन्य किसी साधन द्वारा वस्तु के स्वामी की आज्ञा के बिना वस्तु लेना।
___ उपासकदशांगसूत्र, वंदित्तुसूत्र आदि में अदत्तादान के निम्न पांच अतिचार प्रतिपादित किये गये हैं
१. चोरी का माल खरीदना। २. चोर को चोरी के लिए प्रोत्साहित करना या उसके कार्यों में सहयोग देना। ३. राज्य विरूद्ध व्यापार आदि करना ४. नापतौल में कमी करके ग्राहक को माल देना और वृद्धि करके लेना और ५. माल में मिलावट करके बेचना।
४. ब्रह्मचर्य-अणुव्रत ब्रह्मचर्य श्रावक का चौथा अणुव्रत है। इसे स्वदारासंतोषव्रत या स्वपति संतोषव्रत भी कहा जाता है। ‘उपासकदशांगसूत्र' में आनन्द श्रावक द्वारा ब्रह्मचर्य
२६. वंदितुसूत्र - १२ । २७. तत्त्वार्थसूत्र -७/२१। २६. शास्त्रवार्तासमुच्चय -१/४ । २६. (क) उपासकदशांग - १/३४
(ख) वंदितुसूत्र - १४ । . Jain Education International
- (लाडन);
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