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संघ की प्रार्थना पर उन्होंने मुनि स्थूलभद्र को पूर्व की वाचना देना प्रारम्भ किया। किन्तु मुनि स्थूलभद्र ने दस पूर्व तक क्रा ही अर्थतः अध्ययन किया तथा शेष चार पूर्व का शाब्दिक ज्ञान प्राप्त किया ।
इस प्रकार सुदीर्घ प्रयास के उपरान्त भी पाटलीपुत्र की वाचना में एकादश अंग ही सुव्यवस्थित किये जा सके । 'दृष्टिवाद एवं उसमें अन्तर्निहित पूर्व को पूर्णतः सुरक्षित नहीं रखा जा सका और शनैः शनैः वह विलुप्त होता चला गया । फिर भी उसकी विषय-वस्तु के आधार पर अनेक अंग बाह्य ग्रन्थों की रचना अवश्य हुई ।
द्वितीय वाचना
आगमों की द्वितीय वाचना ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में महावीर निर्वाण के लगभग ३०० वर्ष पश्चात् कुमारी पर्वत पर हुई । सम्राट् खारवेल जैन धर्म के परम उपासक थे । उनके सुप्रसिद्ध 'हाथी गुफा अभिलेख से यह सिद्ध होता है कि उन्होंने उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर जैन मुनि सम्मेलन बुलाया और मौर्यकाल की पाटली पुत्र वाचना के पश्चात् जो अंग विस्मृत हो रहे थे उनका पुनरोद्धार कराया ।
इस अभिलेख के अतिरिक्त . 'हिमवन्त - थेरावली' नामक संस्कृत - प्राकृत मिश्रित पट्टावली में भी स्पष्ट उल्लेख है कि महाराजा खारवेल ने प्रवचन का उद्धार कराया था। 'हिमवन्त - स्थविरावली के अतिरिक्त इस वाचना के सम्बन्ध में श्वेताम्बर साहित्य में कहीं कोई सूचना उपलब्ध नही हैं। सम्भवतः यह वाचना दक्षिण की अचेल परम्परा में प्रचलित रही होगी । यहां यह भी ज्ञातव्य है कि 'हिमवन्त - थेरावली की प्रमाणिकता को अधिकांश विद्वान स्वीकार नहीं करते हैं, फिर भी खारवेल के अभिलेख से इस वाचना की पुष्टि अवश्य होती है।
तृतीय वाचना
आगम संकलन का तीसरा प्रयास महावीर निर्वाण के ८२७ वर्ष पश्चात् अर्थात् ई. सन् की तीसरी शताब्दी में मथुरा में आर्य स्कंदिल के नेतृत्व में हुआ । अतः यह वाचना माथुरी वाचना या स्कंदिली वाचना के नाम से विश्रुत है। प्रथम, द्वितीय वाचना के पश्चात् ग्यारह अंगों का ज्ञान उसी कंठस्थ परम्परा से प्रवाहित
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