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________________ ४३० ५. शिकार : ___उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार शिकार खेलना क्रूर एवं हिंसक कर्म है। इसमें व्यर्थ ही बेचारे निरीह प्राणियों का हनन किया जाता है। अहिंसा की साधना में अग्रसर होने वाले साधक को इसका सर्वथा त्याग करना चाहिए। उत्तराध्ययनसूत्र के. अठारहवें अध्ययन में शिकार-त्याग का उपदेश दिया है । इसमें संजय राजा शिकार खेलने के उद्देश्य से जंगल में जाता है, वह अपने शौक के कारण हिरणों का शिकार करता है। वहां ध्यानस्थ मुनि राजा को इस हिंसक कर्म से विरत होने की प्रेरणा देते ६. चौर्यकर्म : ___उत्तराध्ययनसूत्र में चौर्यकर्म को निन्दनीय एवं त्याज्य बताया गया है। इसमें साधक को बिना आज्ञा के दन्तशोधन हेतु एक तिनका भी लेने का निषेध किया गया है। चौर्यकर्म का विस्तृत वर्णन हमने इस ग्रन्थ में अदत्तादानविरमणमहाव्रत तथा अस्तेय अणुव्रत के अंतर्गत किया है। ७. परस्त्रीगमन : स्वपत्नी के अतिरिक्त अन्य किसी के साथ कामवासनाजन्य व्यवहार करना परस्त्रीगमन सम्बन्धी दोष है। पुरूषों के लिये तिर्यचिनी (मादा पशु-पक्षी) मानव-स्त्री, देवी, अथवा काष्ट या पाषाण की पुतली आदि के साथ भी कामभोग सम्बन्धी चेष्टा करना परस्त्रीगमन रूप व्यापार माना गया है । इस प्रकार उत्तराध्ययनसूत्र की शिक्षाओं में पूर्वोक्त व्यसन के त्याग की प्रेरणा अन्तर्निहित है। व्यसनी तथा निर्व्यसनी की दशा का चित्रण करते हुए किसी कवि ने कहा है ____ 'व्यसन' मृत्यु से भी अधिक कष्टप्रद है क्योंकि मृत्यु एक बार ही कष्ट देती है पर व्यसन जीवन भर कष्ट देते रहते हैं और व्यसनी व्यक्ति मृत्यु के बाद परलोक में भी विविध कष्टों को प्राप्त होता है जबकि निर्व्यसनी व्यक्ति यहां भी सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है तथा परलोक में भी स्वर्ग सुख का उपभोग करता है। १३. उत्तराध्ययनसूत्र - १६/२७ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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