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आचार्य हरिभद्रसूरि के अनुसार मद्यपान करने वाले में निम्न सोलह दोष उत्पन्न होते हैं - १. शरीर का विद्रुप होना २. विविध रोगों से ग्रस्त होना ३. परिवार से तिरस्कृत होना ४.समय पर काम करने की क्षमता का न रहना ५. अन्तर्मानस में द्वेष पैदा होना ६. ज्ञानतंतुओं का कुण्ठित होना ७. स्मृति का क्षीण होना ८. बुद्धि का विकृत होना ६. सत्संग के प्रति अरुचि १०. वाणी में कठोरता होना ११. निम्न स्तरीय व्यक्तियों का संपर्क होना १२. कुलहीनता को प्राप्त होना १३. शक्ति का हास होना १४. धर्म का पालन नहीं कर पाना १५. अर्थ का नाश एवं १६. काम का नाश। संक्षेप में कहा जाय तो एक शराबी व्यक्ति में सभी प्रकार के दोषों की संभावना बनी रहती है।
४. वेश्यागमन : .
उत्तराध्ययनसूत्र में यद्यपि वेश्यागमन के निषेध का स्पष्ट रूप से कहीं उल्लेख नहीं आया है फिर भी इसके सोलहवें ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान नामक अध्ययन में ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए कितनी सतर्कता आवश्यक है इस पर व्यापक रूप
से प्रकाश डाला गया है । इससे वेश्यागमन का निषेध स्वतः हो जाता है। इसमें : बह्मचर्य की साधना करने वाले साधक के लिए निम्न दस बातें वर्जित हैं.. १. स्त्री, पशु और नपुंसक से आकीर्ण शयन एवं आसन का त्याग करे;
२. स्त्रियों के बीच कथा-वार्ता न करे; ३. स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठे; ४. स्त्रियों की ओर एकाग्र दृष्टि से न देखे ५. स्त्रियों के कूजन, रोदन, गीत, हास्य, विलाप आदि को न सुने; ६. पूर्वकृत् कामभोगों का स्मरण न करे; ७. - प्रणीत आहार का ग्रहण न करे; ८. . अतिमात्रा में आहार का ग्रहण न करे; ६. विभूषा आदि न करे; १०. शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श में आसक्त न रहे।
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उतराध्ययनसून १६/११, १२, १३।
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