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________________ है। जुआरी के इस उदाहरण से जुए के दुष्परिणाम ज्ञात होते हैं। सूत्रकृतांग में भी जुआ खेलने का निषेध किया गया है।' जुए के कारण कभी - कभी पारिवारिक जीवन भी संकटग्रस्त हो जाता है। इतिहास इस बात का साक्षी है। पाण्डवों के द्यूत व्यसन के कारण ही द्रौपदी का चीर हरण एवं महाभारत का युद्ध हुआ। २. मांसाहार : जुए के समान मांसाहार भी एक व्यसन है। मांसभक्षण निर्दयता का प्रतीक है। यह मानवीय प्रकृति के प्रतिकूल है। उत्तराध्ययनसूत्र का सातवां 'उरभ्रीय' अध्ययन मांसाहार के दुष्परिणाम का उल्लेख करता है। इस के बाईसवें अध्ययन अरिष्टनेमि भगवान के तोरण से लौट जाने का जो प्रसंग उल्लेखित है उसका कारण भी बारातियों के आहार के लिए एकत्रित पशुओं के प्रति भगवान की करूणा ही थी । इस प्रकार मांसाहार निन्दनीय माना गया है। ४२८ ३. सुरापान : जो पेय पदार्थ मादकता उत्पन्न करते हैं, विवेक को कुण्ठित करते हैं, वे मद्यपान या सुरापान के अन्तर्गत आते हैं। इसका प्रचलित शब्द 'शराब' है किन्तु इसके अन्तर्गत सभी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन समाहित है। उत्तराध्ययनसूत्र में अनेक स्थलों पर मदिरापान का निषेध किया गया है। इसके पांचवें अध्ययन में कहा गया है कि हिंसक, मायावी, अज्ञानी, चुगलखोर, धूर्त व्यक्ति मांस एवं मदिरा का सेवन करते हैं अतएव सज्जन पुरुष इनसे दूर रहते हैं। 10 मदिरापान के दुष्परिणाम का उल्लेख करते हुए हेमचन्द्राचार्य ने योगशास्त्र, में लिखा है कि जैसे अग्नि की एक चिनगारी घास के ढेर को समाप्त कर देती है वैसे मदिरापान से विवेक, संयम, ज्ञान, सत्य, शौच, दया आदि सभी गुण नष्ट हो जाते हैं। " 11 ८. तवो से मरणंतमि, बाले संतस्सई भया । अकाममरणं मरई, धुत्ते कलिना जिए ।। ६. सूत्रकृतांक ६/१७ । १०. उत्तराध्ययनसूत्र ५ / ६ । ११. योगशास्त्र ३/४२ । Jain Education International उत्तराध्ययनसूत्र ५/१६ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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