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१. उपाश्रय सुसज्जित न हो :
____ मन को लुभाने वाला, चित्रों से सुशोभित, पुष्पमालाओं एवं अगर-चंदनादि सुगन्धित द्रव्यों से सुवासित, सुंदर वस्त्रों (परदे आदि) से सुसज्जित एवं सुंदर दरवाजों (कलाकारी आदि से सुसज्जित) से युक्त उपाश्रय साधु के निवास योग्य नहीं है क्योंकि ऐसे उपाश्रय में साधु की निर्विकार साधना में बाधा उत्पन्न होने की संभावना रहती है। २. उपाश्रय एकान्त एवं शांत हो :
जिस स्थान पर गृहस्थ का अधिक आवागमन न हो, उनके घनिष्ठ सम्पर्क से रहित हो ऐसे श्मशान, उद्यान, शून्यगृह, वृक्ष, लतामण्डप का तल भाग आदि एकान्त स्थलों पर साधु निवास करे। उत्तराध्ययनसूत्र में अनेक स्थलों पर मुनि को 'विविक्तशयनासन' अर्थात् एकान्त में रहने वाला कहा गया है। ३. जो उपाश्रय परकृतं हो :
. जो उपाश्रय साधु के निमित्त से बनाया गया न हो अर्थात् गृहस्थ ने जिसे स्वयं की आराधना के लिए बनवाया हो ऐसे उपाश्रय में ही मुनियों को ठहरना चाहिये। भवन के निर्माण में षट्जीवनिकाय के जीवों की विराधना होती है, और उसमें साधु का निमित्त होने से साधु भी उस हिंसा के सहभागी होते हैं। ४. जो मुनि के लिये परिष्कृत न हो :
साधु ठहरने वाले हैं इस आशय से उपाश्रय की सफाई, लिपाई, पोताई की गई हो तो साधु उस स्थान में न ठहरे। इसी प्रकार वह स्थान यदि अंकुरोत्पादक बीजों से आकीर्ण हो और मुनि के ठहरने के लिए उन्हें हटाया जाये तो पी वहां नहीं ठहरे। इसका प्रयोजन यह है कि साधु के निमित्त किसी प्रकार का हेंसादि का कार्य नहीं होना चाहिये। १. जीवादि से रहित हो : . मुनि को प्रासुक भूमि में रहना चाहिये अर्थात् जहां मुनि ठहरे उस स्थान में यदि अधिक जीवों की उत्पत्ति की संभावना हो तो मुनि ऐसे स्थान पर निवास न करे।
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