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(५) चूलिका सूत्र :
१. नन्दीसूत्र २. अनुयोगद्वार
(६) प्रकीर्णक आगमग्रन्थ :
१. चतुःशरण
३. महाप्रत्याख्यान
५. तंदूलवैचारिक
७. गच्छाचार
६. देवेन्द्रस्तव
६
२. आतुरप्रत्याख्यान
४. भक्तपरिज्ञा
६. संस्तारक
८. गणिविद्या
१०. मरणसमाधि
इन आगमों को सुव्यवस्थित एवं सम्पादित करने हेतु अनेक प्रयास किये गये हैं जिन्हें जैन शब्दावली में वाचना कहा जाता है, जिनका विवरण आगे दिया जा रहा है।
१.३ जैन आगमों की विभिन्न वाचनाएं
आज से पच्चीस सौ वर्ष पूर्व का इतिहास यह बताता है कि उस समय जिज्ञासु अपने धर्मशास्त्रों का ज्ञान अपने धर्मगुरूओं से वाचना द्वारा प्राप्त करते थे। सर्वप्रथम वे श्रुतपाठ को कंठस्थ करते तत्पश्चात् कण्ठस्थ पाठों का बारबार पारायण करके उन्हें याद रखते थे । इस प्रकार श्रुतसंपदा गुरुशिष्य परम्परा से संरक्षित होती रही और भगवान महावीर के निर्वाण के लगभग 980 वर्ष बाद तक यह कण्ठस्थ ही रही ।
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आचार्य अपने शिष्यों को सूत्र और अर्थ का जो अध्ययन कराते थे, उसे जैन परिभाषा में 'वाचना' कहते हैं।" वैसे प्रत्येक श्रुतधर आचार्य अपने शिष्यों को वाचना देते हैं परन्तु यहां हमारा तात्पर्य उस सामान्य वाचना से नहीं है। यहां हमें तो उन्हीं विशेष वाचनाओं का उल्लेख अभीष्ट है, जो जैनसंघ में श्रुतसंपदा को संरक्षित करने हेतु हुई थी ।
इन वाचनाओं के माध्यम से जैन आगमों को सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया। जैसे भगवान के उपदेशों के आधार पर गणधरों ने आगमों की रचना की थी, वे आज शब्दश: हमारे पास उस रूप में नहीं हैं। था कि जहां वैदिक परम्परा में शब्द पर अधिक
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इसका मुख्य कारण यह बल दिया गया, वहां
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