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नन्दीसूत्र में जिन आगमग्रन्थों का उल्लेख है, उनमें भी आज कालिक और उत्कालिक वर्ग के अनेक आगमग्रन्थ अनुपलब्ध हैं, पुनः जहां आवश्यक वर्ग के अन्तर्गत छः स्वतन्त्र आगमों का उल्लेख है, वहां वर्तमान में उसे एक ही आगम माना जाता है। इस प्रकार वर्तमान में आगमों की संख्या ४५ तक सीमित हो जाती है। लगभग बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी के पश्चात् नन्दीसूत्र के पूर्व प्रचलित वर्गीकरण के स्थान पर एक नया वर्गीकरण आया, जिसमें आगमों को अंग, उपांग, छेद, मूल, चूलिका एवं प्रकीर्णकसूत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस वर्गीकरण के आधार पर वर्तमान में उपलब्ध कौनसा आगम किस वर्ग में आता है यह स्पष्ट हो जाता है। यह नवीन वर्गीकरण निम्नांकित्त है
आगमों का नवीन वर्गीकरण
(१) अंग आगम
१. आचारांग
४. समवायांग
७. उपासकदशा
१०. प्रश्नव्याकरण
(२) उपांग आगम : १. औपपातिक
(३)
३. जीवाजीवाभिगम ५. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति
७. चन्द्रप्रज्ञप्ति
६. कल्पावतंसिका
११. पुष्पचूला.
मूलआगम :
१. उत्तराध्ययनसूत्र
३. आवश्यकसूत्र
१. दशाश्रुतस्कन्ध ४. निशीथ
२. सूत्रकृतांग
५. व्याख्याप्रज्ञप्ति
५
८. अन्तकृदशा ११. विपाकसूत्र
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३. स्थानांग
६. ज्ञाताधर्मकथा
६. अनुत्तरोपपातिकदशा
१२. दृष्टिवाद (जो विच्छिन्न हो गया है)
२. राजप्रश्नीय या राजप्रसेणीय
४. प्रज्ञापना
६. सूर्यप्रज्ञप्ति
निरयावलका
८.
१०. पुष्प
१२. वृष्णिदशा
स्थानकवासी एवं तेरापंथी सम्प्रदाय में आवश्यक एवं पिण्डनिर्युक्ति के स्थान पर नन्दीसूत्र एवं अनुयोगद्वार को मूलसूत्र माना गया है।
(४) छेदसूत्र :
२. दशवैकालिक ४. पिण्डनिर्युक्ति ।
२. कल्प
३. व्यवहार
५. महानिशीथ और ६. जीतकल्प ।
स्थानकवासी एवं तेरापंथी संप्रदाय में महानिशीथ एवं जीतकल्प के अतिरिक्त पूर्वोक्त, चारों सूत्रों को ही छेदसूत्र के रूप में स्वीकार किया गया है ।
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