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________________ ४१३ सामायिक के दो पहलू हैं - (१) निषेधात्मक (२) विधेयात्मक। पापकार्यों से विरति इसका निषेधात्मक पक्ष है तथा समत्वभाव की प्राप्ति इसका विधेयात्मक पक्ष है। गृहस्थ साधक के लिये सामायिक का समय एक अन्तर्मुहूर्त अर्थात् ४८ मिनिट का है। यहां प्रश्न हो सकता है कि सामायिक का काल ४८ मिनिट ही क्यों रखा गया है । इसके उत्तर में व्याख्यासाहित्य में कहा गया है - 'अंतोमुहुत्तंकालं चित्तस्सेगग्गया हवइ झाणं' सामान्य व्यक्ति का एक विचार, एक भाव, एक संकल्प, एक ध्यान अधिक से अधिक अन्तर्महर्त तक ही रह सकता है। अतः भावों की एक धारा की दृष्टि से ही सामायिक का यह काल निर्धारित किया गया है। (२) चतुर्विशतिस्तव यह दूसरा आवश्यक है। सामायिक की साधना में सावधयोग से निवृति होती है । तदनन्तर साधक को किसी न किसी आलम्बन की आवश्यकता होती है । अतः साधक अपने साधनाकाल में समभाव में रहे इस हेतु चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति रूप चतुर्विंशतिस्तव' इस द्वितीय आवश्यक का विधान किया गया उत्तराध्ययनसूत्र में चतुर्विंशतिस्तव करने से जीव को क्या प्राप्त होता है इसके उत्तर में कहा गया है 'चतुर्विंशतिस्तव करने से जीव दर्शन-विशुद्धि को प्राप्त होता है । इसके ही उनतीसवें अध्ययन के पन्द्रहवें सूत्र में यह भी कहा गया है कि स्तवनस्तुति रूप मंगल से मोक्ष की प्राप्ति भी होती है अर्थात् भगवद्भक्ति के फलस्वरूप पूर्वसंचित कर्मों का क्षय होता है । भगवद्भक्ति के माध्यम से प्राप्त होने वाली मुक्ति या कर्मनिर्जरा परमात्मा की कृपा का परिणाम नहीं है वरन् स्वयं के दृष्टिकोण की विशुद्धि का ही परिणाम है। जैनदर्शन के अनुसार तीर्थंकर या वीतरागदेव साधक की साधना के आदर्श हैं। वीतराग का आलम्बन लेकर साधक यह चिन्तन करता है कि वस्तुतः तीर्थंकर की आत्मा और मेरी आत्मा आत्मतत्त्व के रूप में समान है, यदि मैं प्रयत्न करूं तो मैं भी उनके समान बन सकता हूं; परमात्मा का अतीत और मेरा अतीत एक समान है, वर्तमान में अन्तर हो गया है और यह अन्तर किस कारण से हुआ है १६१ उत्तराध्ययनसूत्र - २६/१० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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