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________________ ४०४ १. क्षमाः क्षमा आत्मा का प्रमुख धर्म है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि साधक क्रोध से अपने आपको बचाये रखे। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि क्षमा के द्वारा ही क्रोध पर विजय प्राप्त की जा सकती है। 162 जैनपरम्परा में दूसरों को क्षमा करना एवं स्वयं के दोषों के लिये क्षमा याचना करना साधक का अनिवार्य कर्तव्य है। इसके लिये जैनपरम्परा में प्रत्येक साधक द्वारा सायंकाल, प्रातःकाल, पक्षान्त (पंद्रह दिवस) में, चार माह (चातुर्मास पूर्ण होने पर) में और संवत्सरि पर्व पर सभी प्राणियों से क्षमा याचना करने का विधान है। क्षमा की भावना से भावित होने पर साधक यह चिंतन करता है कि मैं सभी प्राणियों को क्षमा करता हूं और सभी प्राणी भी मुझे क्षमा करें। मेरी सभी प्राणियों से मित्रता है। किसी से मेरा वैर नहीं है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है 'मेत्तिं भूएसु कप्पए' अर्थात् सभी प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव धारण करे।163 २. मार्दव : . . क्षमा के समान मार्दव भी आत्मा का स्वभाव है। मार्दव का शाब्दिक अर्थ मृदोर्भावः मार्दवः अर्थात् मृदुता कोमलता या विनम्रता है। मान कषाय के उपशांत होने पर मार्दव धर्म प्रकट होता है। कषायों में पहला स्थान क्रोध का एवं द्वितीय स्थान मान का है। दशविध धर्मों में भी पहला स्थान क्षमा (क्रोध का प्रतिपक्ष) का तथा दूसरा स्थान मार्दव (मान का प्रतिपक्ष) का है। ... क्रोध का विपक्ष क्षमा एवं मान का विपक्ष मार्दव है।. यद्यपि क्रोध एवं मान दोनों द्वेष रूप होते हैं फिर भी इनमें स्वभावगत अन्तर है; कोई हमारी निन्दा करे तो हमें क्रोध आता है और कोई हमारी प्रशंसा करे तो हमें मान हो जाता है। इस प्रकार निन्दा एवं प्रशंसा के क्षणों में कषाय रूप परिणति ही क्रमशः क्रोध और मान बन जाती है । जैसे, शारीरिक स्वास्थ्य के कमजोर होने पर व्यक्ति को सर्दी एवं गर्मी दोनों परेशान करती है; उसे सर्दी में जुखाम एवं गर्मी में लू आदि लग जाती है। इसी प्रकार आत्मिक बल के क्षीण होने पर अर्थात् समत्व से विचलन 4. उत्तराध्ययनसूत्र - ४/१२ । १२. दशवकालिक - ८/३८ । II उत्तराध्ययनसूत्र - ६४२ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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