SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६७ (१०) निषेधिका परीषह : श्मशान, शून्यगृह, वृक्षमूल आदि स्थानों में स्थित या ध्यानस्थ मुनि को यदि कोई . कष्ट या भय आदि हो तो भी वह उस स्थान से अन्यत्र कहीं गमन नहीं करे तथा उपसर्गों को समभाव पूर्वक सहन करे यही निषेधिका परीषह पर विजय है। (११) शय्या परीषह : __जैनपरम्परा में मुनिचर्या के सन्दर्भ में शय्या शब्द के दो अर्थ किये गये हैं - १. सोने का स्थान और २. आवास या ठहरने का स्थान। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि मुनि को सोने या ठहरने के लिए यदि ऊंचा-नीचा/असमतल अथवा प्रतिकूल स्थान मिले तो भी वह मन को समभाव में स्थिर रखे, विचलित न हो, यही शय्या परीषह जय है। शय्या परीषह के सन्दर्भ में मुनि यह सोचकर समभाव धारण करे कि मात्र एक रात्रि तो रहना है, एक रात्रि के निवास मात्र में यह प्रतिकूल शय्या मेरा कौन सा बड़ा अहित कर देगी।145 उत्तराध्ययनसूत्र के टीकाकार के अनुसार मूल गाथा में जिनकल्पी मुनि की अपेक्षा से एक रात्रि का उल्लेख किया गया है।147 (१२) आक्रोश परीषह : दारूण कण्टक के समान मर्म भेदक कठोर वचनों को सुनकर भी चुप रहना तथा उसके प्रति थोड़ा सा भी क्रोध नहीं करना आक्रोश परीषह जय है। सरल शब्दों में किसी के आक्रोश को समभाव से सहन करना ही आक्रोश परीषह जय है। (१३) वध परीषह : ___ कोई अज्ञानी पुरूष डंडे आदि से मुनि पर प्रहार करे, कदाचित् उनका प्राणान्त करने के लिए भी तत्पर हो तो भी मुनि यह विचार करे कि आत्मा का कभी नाश नहीं होता है; तितिक्षा या क्षमा भाव धारण करे; प्रतिशोध की भावना नहीं रखे। यह वध परीषह को सहन करना है। (१४) याचना परीषह : मुनि के पास जो भी वस्तुएं होती हैं वे सब गृहस्थ से याचित होती हैं। उनके पास अयाचित कुछ नहीं होता है, किन्तु याचना करते समय अनेक बार १४६ उत्तराध्ययनसूत्र - २/२२, २३ । १४७ उत्तराध्ययनसूत्र टीका - पत्र १३२ - (शान्त्याचार्य)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy