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विशेष में करणीय हो सकता है अतः पूर्वनिषिद्ध कार्य के सम्बन्ध में गुरू से पुनः पूछा जा सकता है, इसमें दोष नहीं है। 121
५. छंदना :
स्वयं द्वारा लाये गये आहार, वस्त्र, पात्र आदि के लिए गुरू एवं अन्य साधुओं को आमंत्रित करना 'छंदना' सामाचारी है। 'छंद' शब्द का सामान्य अर्थ इच्छा होता है किन्तु 'प्राकृतहिन्दीशब्दकोश में छंद शब्द के प्रार्थना, निमंत्रण, प्रणाम. ढक्कन आदि अनेक अर्थ किये गये हैं। 122 प्रस्तुत प्रसंग में उसका अर्थ 'प्रार्थना' 'यां 'निमंत्रण' है।
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इस सामाचारी के पालन से संविभाग की चेतना का विकास होता है । : उत्तराध्ययनसूत्र में असंविभागी मुनि को 'पाप श्रमणं कहा गया है। 123 दशवैकालिक में भी कहा गया है कि असंविभागी को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है।
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६. इच्छाकार :
एक मुनि दूसरे मुनि से कोई कार्य करवाना चाहे, या स्वयं दूसरे का करना चाहे तो 'इच्छाकार का प्रयोग करते है, यह इच्छाकार सामाचारी है अर्थात् कृपया आपकी इच्छा हो तो आप मेरा यह कार्य कर दीजिए या आपकी इच्छा हो तो आप मुझे आपका यह कार्य करने की अनुमति दीजिए । संघीय व्यवस्था में परस्पर सहयोग की आवश्यकता पडती है किन्तु वह सहयोग बल प्रेरित न होकर इच्छाप्रेरित होना चाहिये। 125 उत्सर्गमार्ग में बल प्रयोग सर्वथा वर्जित है किन्तु अपवाद मार्ग में दुर्विनीत को आदेश या आज्ञा देकर कोई कार्य करवाया जा सकता है।
उत्तराध्ययनसूत्र में 'सारणा को इच्छाकार सामाचारी कहा गया है। 126 टीकाकार ने उसी को स्पष्ट करते हुए लिखा है औचित्यपूर्ण कार्य करना और करवाना 'इच्छाकार' सामाचारी है। 127 इस सामाचारी से सिद्ध होता है कि आध्यात्मिक क्षेत्र में व्यक्ति की स्वतंत्रता को विशेष रूप से सम्मान दिया गया है ।
१२१ पंचाशकप्रकरण पृष्ठ २१२ । १२२ प्राकृतहिन्दीकोश, पृष्ठ ३२६ ।
१२३ उत्तराध्ययनसूत्र - १७/११ । १२४ दशवैकालिक ६/२/२२ । १२५ आवश्यकनिर्युक्ति ६७७ १२६ उत्तराध्ययनसूत्र २६ / ६ । १२७ उत्तराध्ययनसूत्र टीका ५३५
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(निर्युक्तिसग्रह, पृष्ठ ६७ ) ।
- ( शान्त्याचार्य) ।
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