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१०. लोभपिण्ड दोष : सरस भिक्षा के लोभ से अधिक घूम घूम कर स्वादिष्ट आहार लेना लोभपिण्ड दोष है। ११. संस्तंव दोष : दाता की या उस के माता पिता, सास श्वसुर आदि सम्बन्धियों की प्रशंसा करके आहार ग्रहण करना संस्तव दोष है। १२. विद्या दोष : कोई विद्या सिखा कर आहार ग्रहण करना विद्या दोष है। १३. मंत्र दोष : मंत्र-जप आदि की विधि बताकर आहार ग्रहण करना मंत्र दोष कहलाता है। १४. चूर्ण दोष : वशीकरण चूर्ण आदि देकर आहार लेना चूर्ण दोष है। १५. योगपिण्ड दोष : योग शक्ति का प्रदर्शन करके आहार ग्रहण करना योगपिण्ड दोष कहलाता है। १६. मूल दोष : गृहस्थ की संतान के मूल आदि नक्षत्रों एवं ग्रह दोष निवारण के उपाय बताकर आहार ग्रहण करना मूल दोष कहलाता है।
एषणा के दस दोष १. शंकित : जिस आहार के प्रासुक एवं शुद्ध होने में शंका हो, ऐसा आहार शंकित दोष युक्त कहलाता है। २. मक्षित : सचित्त द्रव्य से लिप्त आहार म्रक्षित दोष वाला होता है। ३. निक्षिप्त : सचित्त वस्तु पर रखा हुआ आहार निक्षिप्त दोष से दूषित होता है। १. पिहित : सचित्त द्रव्य से आच्छादित आहार पिहित दोषयुक्त कहलाता है। उत्तरध्ययनसूत्र के टीकाकार ने इसे स्पष्ट करने हेतु चार विकल्प दिये हैं110 -
१) सचित्त वस्तु से ढ़का हुआ सचित्त आहार। २) अचित्त वस्तु से ढका हुआ अचित्त आहार। ३) सचित्त से ढ़का हुआ अचित्त आहार। ४) अचित्त से ढ़का हुआ सचित्त आहार।
का उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र - ७३२
- (लक्ष्मीवल्लभगणि)।
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