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२. औद्देशिक : सामान्य साधुओं के उद्देश्य से बनाया गया आहार औद्देशिक दोष से ग्रसित होता है।
३. पूतिकर्म : दोष मिश्रित आहार ग्रहण करना पूतिकर्म दोष कहलाता है। शुद्ध आहार में अशुद्ध आहार (मद्य बिंदु आदि) का मिश्रण अथवा शुद्ध आहार में आधाकर्मिक आहार का मिश्रण पूतिकर्म है।
४. मिश्रजात : गृहस्थ द्वारा स्वयं के साथ साथ साधु के निमित्त से बनाया गया आहार मिश्रजात दोष से युक्त होता है।
५. स्थापनाकर्म : साधु के लिए कोई खाद्य पदार्थ अलग रख देना स्थापनाकर्म दोष कहलाता है।
६. प्राभृतक : साधु के आगमन की सम्भावना को दृष्टि में रखकर भोज आदि का दिन आगे पीछे कर देना ।
७. प्रादुष्करण : दीपक / विद्युत् आदि का प्रकाश करके आहार देना प्रादुष्करण दोष युक्त आहार है।
८. क्रीत: साधु के निमित्त खरीद कर लाया गया पदार्थ क्रीत दोष वाला कहलाता
है ।
६. प्रामित्य : साधु को देने के लिये किसी से उधार लाना प्रामित्य दोष है।
१०. परावर्त : गृहस्थ किसी से आहार को अदल बदल कर साधु को दे तो वह परावर्त दोष है।
११. अभिहृत : अपने घर से या अन्य दूर गांव से लाए हुए आहार को मुनि के सम्मुख लाकर उन्हें वहोराना अभिहृत दोष है।
१२. उद्भिन्न: सीलबंद डिब्बे एवं पैक शीशी आदि को खोलकर उसमें रखी गई वस्तु देना उद्भिन्न दोष है।
१३. मालापहृत : ऊपर या नीचे की मंजिल, छींके, टान वगैरह या सीढ़ी आदि से उतार कर दिये जाने वाला आहार मालापहृत दोष युक्त होता है।
१४. आच्छेद्य: किसी निर्बल से छीन कर लाया गया आहार आच्छेद्य दोष वाला
होता है।
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