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गोच्छग को ग्रहण कर प्रतिलेखना करे104 ओघनियुक्ति में गोच्छग को पात्र के प्रमार्जन का उपकरण बताया गया है।05
पूर्वोक्त इन सभी तथ्यों से यह फलित होता है कि गोच्छग ऊनी कम्बल के टुकड़े हैं जिन्हें पात्रों के ऊपर लपेटा भी जाता है, साथ ही कोमल होने से उनके द्वारा प्रमार्जन भी किया जा सकता है। यह प्रथा वर्तमान में भी सुरक्षित है। गोच्छग को आज भी श्रमण शब्दावली में गुच्छा कहा जाता है।
प्रतिलेखना के दोष :
उत्तराध्ययनसूत्र में प्रतिलेखना सम्बन्धित १३ दोषों का वर्णन किया गया है, जो निम्न हैं106 - १. आरभटा : विधि के विपरीत प्रतिलेखन करना अथवा एक वस्त्र का पूरा प्रतिलेखन किये बिना आकुलता से दूसरे वस्त्र को ग्रहण करना आरभटा' दोष है। २. सम्मर्दा : प्रतिलेखन करते समय वस्त्र को इस प्रकार पकड़ना कि उसके बीच सलवटें पड़ जाये और वस्त्र या उसका कोई भाग दृष्टिगोचर ही नहीं हो अथवा प्रतिलेखनीय उपधि पर बैठकर प्रतिलेखन करना ‘सम्मर्दा दोष है। ३. मोसली : प्रतिलेखन करते समय वस्त्र का मूसल की तरह ऊपर, नीचे या तिरछे जमीन, दीवार आदि से स्पर्श कराना ‘मोसली' दोष है। ४. प्रस्फोटना : प्रतिलेखन करते समय धूल आदि के कारण वस्त्र को गृहस्थ की तरह वेग से झटकना 'प्रस्फोटना' दोष है। यहां प्रश्न हो सकता है कि प्रस्फोटन प्रतिलेखन का अंग भी है और प्रतिलेखना का दोष भी है, यह कैसे ?. इस सम्बन्ध में यह ज्ञातव्य है कि प्रस्फोटन शब्द का अर्थ प्रक्षेपण करना और झटकना दोनों है। जब इसे प्रतिलेखन का अंग माना जाता है, तो इसका अर्थ प्रक्षेपण करना अर्थात् सावधानी पूर्वक वस्त्र को धीरे से हिलाकर उस पर जो जीव या सचित रज आदि हो तो उससे यतनापूर्वक अलग करना है, और जब इसकी गणना प्रतिलेखन के दोषों में होती है, तब इसका अर्थ वस्त्र को जोर से झटकना किया जाता है। यह दोष इसलिए है कि वस्त्र के जोर से झटकने से वायुकाय के जीवों की हिंसा होती है।
१०४ उत्तराध्ययनसूत्र - २६/२३ । १०५ ओघनियुक्ति - ६६५ १०६ उत्तराध्ययनसूत्र - २६/२७ -२७ ।
- (नियुक्तिसंग्रह - पृष्ठ २५४)।
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