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________________ को नौका के आकार का बनाकर उस पर वस्त्र आदि को सावधानी से झटकना ताकि कोई सूक्ष्म जीव हो तो उन्हें हाथ पर लेकर उनका प्रमार्जन किया जा सके। - पात्र - प्रतिलेखन : उत्तराध्ययनसूत्र में प्रतिलेखना के क्रम की चर्चा करते हुए लिखा है कि सर्वप्रथम पात्र की, तत्पश्चात् मुहपत्ति, गोच्छग और फिर वस्त्र की प्रतिलेखना करनी चाहिये।" यहां यह विचारणीय है कि मुहपत्ति, गोच्छग तथा वस्त्र शब्द का क्या अर्थ है? उत्तराध्ययनसूत्र की टीकाओं में मुहपत्ति का अर्थ मुखवस्त्रिका, गोच्छग का अर्थ पात्र के ऊपर का उपकरण तथा वस्त्र का अर्थ पात्र - पटल अर्थात् पात्र के आच्छादन का वस्त्र किया गया है। " 95 ३७७ आचार्य आत्माराम जी ने गोच्छग का अर्थ रजोहरण किया है, इसके पीछे उनका आशय यह है कि उत्तराध्ययनसूत्र में अन्य कहीं रजोहरण की प्रतिलेखना का विधान नहीं आया है अतः यहां गोच्छग से रजोहरण अर्थ ही अभिप्रेत है 96 किन्तु, गोच्छग शब्द से रजोहरण शब्द का ग्रहण करने पर एक समस्या यह आती है कि दशवैकालिक, ओघनिर्युक्ति आदि परवर्ती ग्रन्थों में उपलब्ध उपकरण सूची में रजोहरण तथा गोच्छग ऐसे दो शब्द मिलते हैं। 7 जहां तक मुखवस्त्रिका का प्रश्न है यहां उससे पात्र के मुख के वस्त्र का ग्रहण किया जाय या व्यक्ति के मुख के वस्त्र का, इसका समाधान ओघनिर्युक्ति में निर्दिष्ट मुखवस्त्रिका के अर्थ से हो सकता है । उसमें मुंहपत्ति के सन्दर्भ में कहा गया है का वस्त्र, २. बोलते समय संपातिम जीवों से रक्षा तथा रेणुकण के प्रमार्जन के काम आने का प्रमार्जन करते समय नाक और मुंह मुंह पर बांधने का वस्त्र | 1 का वस्त्र, ३. सचित्त पृथ्वी वाला वस्त्र तथा ४. वसति ( आवास - स्थल) में रजकण प्रवेश न करे, इस हेतु नाक और ६४ उत्तराध्ययनसूत्र २६ / २३ । ६५ (क) उत्तराध्ययनसूत्र टीका - पत्र २७०१ (ख) उत्तराध्ययनसूत्र टीका - पत्र २७०४ - ६६ उत्तराध्ययनसूत्र - तृतीय भाग पृष्ठ ११६७ ६७ (क) दशवैकालिक - ४ / २३; (ख) ओघनिर्युक्ति - ६६८, ६६६ ६८ ओघनियुक्ति - ७१३ Jain Education International ( नेमिचन्द्राचार्य); ( नेमिचन्द्राचार्य)। (आत्मारामजी) । १. पात्र की प्रतिलेखन करने (निर्युक्तिसंग्रह - पृष्ठ २५१-२५२) । - (निर्युक्तिसंग्रह) । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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