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________________ ३७४ इस प्रकार मुनि इन आठ प्रहरों को किस प्रकार व्यतीत करे, इसका क्रमशः वर्णन किया गया है। साथ ही इसमें दिनचर्या के सम्बन्ध में कहा गया है कि 'विचक्षण भिक्षु दिन के चार भाग करे और उनमें उत्तरगुणों अर्थात् स्वाध्याय, ध्यान आदि की आराधना करे। उत्तराध्ययनसूत्र की टीकाओं में उत्तरगुणों का अर्थ स्वाध्याय, ध्यान आदि किया गया है। पंचमहाव्रत मूल गुण कहे जाते हैं इसलिये इनका पालन सदैव करना होता है। उत्तरगुण वे हैं जिनका पालन निर्धारित समय पर किया जाता है। दिन का प्रथम प्रहर : दिन का प्रथम प्रहर सामान्यतः स्वाध्याय का है, किन्तु स्वाध्याय में प्रवृत्त होने से पूर्व दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थांश में अर्थात् सूर्योदय के पश्चात् मुनि सर्वप्रथम वस्त्र, पात्र की प्रतिलेखना करे, तत्पश्चात् गुरू की वंदना करके हाथ जोड़कर पूछे: “हे भगवन्त ! मैं वैयावृत्य करूं या स्वाध्याय करूं?' गुरू जिस कार्य की आज्ञा दें, शिष्य उसी कार्य में अग्लान भाव से प्रवृत्त हो जाए। द्वितीय प्रहर : यह प्रहर मुनि के लिए ध्यान का होता है। नेमिचन्द्राचार्य आदि उत्तराध्ययनसूत्र के टीकाकारों ने ध्यान का अर्थ, अर्थचिंतन किया है।" यहां अर्थ से तात्पर्य सूत्रों के अर्थ से है क्योंकि दिन के प्रथम प्रहर में सूत्र का स्वाध्याय किया जाता है । दूसरे प्रहर में सूत्रों के अर्थ का चिंतन किया जाता है। इन्हें आगमिक शब्दों में क्रमशः सूत्रपोरिसी एवं अर्थपोरिसी कहा जाता है ।। तृतीय प्रहर : दिन का तीसरा प्रहर मुनि की भिक्षाचर्या का होता है। इस प्रहर में मुनि गौचरी (आहार) लेने के लिये निकले एवं आहार ग्रहण करे। - (शान्त्याचार्य, लक्ष्मीवल्लभगणि)। CE उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र - २६८६, २६६० ९० उत्तराध्ययनसूत्र - २६/२२, ३७ । ६१ उत्तराध्ययनसूत्र टीका २६८२ __ - (नेमिचन्द्राचार्य। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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