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________________ सामाचारी शब्द का व्युत्पत्तिपरक अर्थ : समाचारी एवं सामाचारी इन दोनों ही शब्दों का प्रयोग जैन-ग्रन्थों में उपलब्ध होता है । पर जहां तक आगम ग्रन्थों का प्रश्न है वहां स्थानांग .. समवायांग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा, उत्तराध्ययनसूत्र आदि आगमों में सामाचारी शब्द का प्रयोग हुआ है, अतः सामाचारी शब्द कैसे निष्पन्न हुआ इसे जानना आवश्यक है। 86 ३७३ सम्यक् आचरणं समाचारं समाचरस्य भावं सामाचारी । 'सम् + आङ् + चर् धातु से भाव अर्थ में 'गुण वचन ब्रह्मणादिभ्यो ष्यञ्' सूत्र में से ष्यञ् प्रत्यय हुआ। सम् + आ + र् + य । ( ष्यञ् प्रत्यय में ष् एवं ञ् दोनों की इत् संज्ञा होकर लोप हो जाता है शेष य ही रहता है) तदितेष्वचामादे' सूत्र से आदि वृद्धि (आ) हुई। स्त्रीत्व विवक्षा में 'षिद्गौरादिभ्यङीष्' सूत्र से ङीष् प्रत्यय हुआ । सम् + आ + चर् + य + ङीष् । इस प्रकार का रूप बनने पर 'हलस्तद्धितेष्व' सूत्र से ङीष् के पूर्व य का लोप हुआ (डीष में ड् ष् का लोप हो जाने पर ई शेष रहता है) इस प्रकार सामाचारी शब्द निष्पन्न होता है। अब हम क्रमशः मुनि की दैनिक सामाचारी एवं दशविध सामाचारी का विवेचन प्रस्तुत करेंगे। १०.३.१ दैनिक सामाचारी : उत्तराध्ययन सूत्र में समय के अनुसार साधु की दिनचर्या एवं रात्रिचर्या का निर्धारण किया गया है। इससे समय के महत्त्व का प्रतिपादन होता है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है 'काले कालं समायरे' अर्थात् सभी कार्य नियत समय पर करना चाहिये। 7 इसमें कालक्रम के अनुसार मुनि की दिनचर्या की रूपरेखा इस प्रकार निर्धारित की गई है- दिन के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे प्रहर में ध्यान, तीसरे प्रहर में भिक्षाचर्या एवं आहार और चौथे प्रहर में पुनः स्वाध्याय । इस प्रकार रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय दूसरे प्रहर में ध्यान, तीसरे प्रहर में नींद और चौथे प्रहर में स्वाध्याय । ८६ (क) स्थानांग - १० / १०२ (ख) समवायांग- ३६/१ (ग) भगवती - २५/ ५५५ झाताधर्मकथा - १६ / २७७ (ङ) उत्तराध्ययनसूत्र - २६ / १, ४,७ । ८७ उत्तराध्ययनसूत्र - १/३१ । ८८ उत्तराध्ययनसूत्र - २६/११, १७ । Jain Education International ( अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड १, पृष्ठ ८०६); ( अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड १, पृष्ठ ८८२); ( अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड २, पृष्ठ ६६८ ) ; (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड ३, पृष्ठ ३२७ ) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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