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कायगुप्ति अर्थात् कायिक प्रवृत्तियों का निरोध करने से जीव संवर को प्राप्त करता है । कायगुप्ति के द्वारा पापकर्मों का बंध कराने वाले आश्रवों का निरोध हो जाता है।
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१०.३ सामाचारी
मुनि जीवन की साधना के दो पक्ष होते हैं पहला वैयक्तिक, दूसरा सामुदायिक/संघीय-आचार। जो मुनि संघीय जीवन यापन करते हैं, उनके लिये संघीय - आचार का ज्ञान अत्यन्त उपयोगी होता है। उत्तराध्ययनसूत्र में मुनि की व्यक्तिगत आचार संहिता के साथ ही संघीय आचारसंहिता का भी प्रतिपादन किया गया है। जिसका विस्तृत विवेचन इसके छब्बीसवें 'सामाचारी अध्ययन में किया
गया है।
सामुदायिक जीवन का व्यवस्थित रूप से निर्वाह करना बहुत बड़ी कला है। मुनियों को सामुदायिक जीवन कैसे जीना है इसके लिए एक सामाचारी अर्थात् आचार व्यवस्था बनाई गई है। सामाचारी शब्द का अर्थ करते हुए उत्तराध्ययनसूत्र की टीका में कहा गया है- साधुजन की इति कर्त्तव्यता अर्थात् संघीय जीवन एवं व्यावहारिक साधना की आचार संहिता सामाचारी है। 83 ओघनियुक्ति टीका के अनुसार सम्यक् आचरण समाचार कहलाता है । अतः शिष्ट "जनों के द्वारा आचरित क्रियाकलाप सामाचारी है। 84
सामाचारी को समयाचारी भी कहा गया है । इसका अर्थ अहोरात्र / दिनरात में करने योग्य आगमोक्त क्रियाकलापों की सूची . है । दिगम्बर साहित्य में सामाचारी के स्थान पर समाचार और सामाचार शब्द का प्रयोग हुआ है। मूलाधार के अनुसार इसके चार अर्थ है- १) समता का आचार २) सम्यक् आचार ३) सम् आचार और ४) समानता का आचार | 85
८३ उत्तराध्ययनसूत्र टीका पत्र ५३४ ।
८४ ओषनियुक्ति टीका उद्धृत उत्तराध्ययनसूत्र मधुकरमुनि, पृष्ठ ४३६ ।
८५ मूलाचार ४ / २ ।
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