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'आगम' शब्द के कुछ अर्थ एवं व्याख्याएं निम्न रूप से भी प्राप्त होती हैं -
'प्राकृत-हिन्दी कोश' में 'आगम' शब्द के ज्ञान, जानना, शास्त्र; सिद्धान्त आदि अनेक अर्थ किये गये हैं। आचारांगसूत्र में भी आगम शब्द 'जानने के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
संस्कृत-हिन्दी कोश के अनुसार परम्परागत सिद्धान्तग्रन्थ, उपदेशग्रन्थ तथा धर्मग्रन्थ आगम हैं।
__ अधिकांश ग्रन्थों में आप्त के उपदेश को आगम कहा गया है। वस्तुतः आप्तवचन से उत्पन्न अर्थबोध आगम है। उपचार से आप्तवचन भी आगम कहे जाते हैं।
__ आगम शब्द में प्रयुक्त 'आ' 'ग' और 'म' इन अक्षरों के आधार पर इसे निम्न रूप से भी विश्लेषित किया गया है – 'जिससे पदार्थों का परिपूर्णता (आ) के साथ मर्यादित (म) ज्ञान (ग) प्राप्त हो वह आगम है।'
आचार्य सिद्धसेनगणि के अनुसार जो ज्ञान आचार्यपरम्परा से वासित होकर आता है वह आगम है।
विशेषावश्यक भाष्य में कहा गया है कि जिससे सही शिक्षा प्राप्त होती है अथवा विशेष ज्ञान प्राप्त होता है वह शास्त्र आगम या श्रुतज्ञान कहलाता है।'
इस प्रकार आप्त अर्थात् सर्वज्ञ के प्रामाणिक वचनों के आधार पर निर्मित ग्रन्थ या शास्त्र आगम कहलाते हैं।
वर्तमान में प्रमाणभूत आगमों की संख्या के विषय में जैनपरम्परा के उपसंप्रदायों में कुछ मतभेद देखा जाता है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा का एक वर्ग ८४ आगमों को प्रमाण मानता है तो दूसरा वर्ग ४५ आगमों को ही प्रमाण मानता
२ प्राकृत-हिन्दी कोश पृष्ठ १०६ । ३ आचारांगसूत्र १/२/३/६२ तथा १/४/२/१६ - (अंगसुत्ताणि, लाडनूं, खण्ड १, पृष्ठ २१, ३५) । ४ संस्कृत-हिन्दी कोश पृष्ठ १३६ । ५ 'आ समन्तात् गम्यते वस्तुतत्त्वमनेनेत्यागमः' - रत्नाकरावतारिका वृत्ति - उद्धृत 'जैन आगम साहित्य मनन और
मीमांसा' पृष्ठ ५-देवेन्द्र मुनि। ६ 'आगच्छत्याचार्य परम्परया वासनाबारेणेत्यागमः' - सिद्धसेनगणि कृत 'भाष्यानुसारिणी' टीका पृष्ठ ७ । ७ 'सासिज्जइ जेणतयं सत्यं तं चाऽविसे विसेसियं नाणं ; आगम एव य सत्यं आगममत्थं तु सुयनाणं ।' - 'विशेषावश्यकभाष्य' गाथा ५५६ ।
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